दामोदर मौउजो को मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार के बहाने क्या दक्षिणपंथी अतिवाद पर चर्चा शुरू होगी
The Wire
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कोंकणी लेखक दामोदर मौउजो के पास वह क्षमता है जो उन्हें तात्कालिक बात से आगे देखने का मौक़ा देती है, जिसने उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित किया है कि वह ताउम्र महज़ कलम और कागज़ तक अपने को सीमित न रखें बल्कि सामाजिक-राजनीतिक तौर पर अहम मुद्दों पर भी बोलें, यहां तक कि समाज में पनप रहे दक्षिणपंथी विचारों, उनकी डरावनी हरकत के बारे में भी मौन न रहें.
नोबेल पुरस्कार विजेता महान पोर्तुगीज लेखक जोसे सारामागो (1922-2010) का एक बेहद चर्चित उपन्यास है ‘ब्लाइंडनेस’ (दृष्टिहीनता). उपन्यास किसी अजनबी शहर में एक संक्रमण की तरह फैली अंधत्व की बीमारी और उसके बाद हुए सामाजिक विघटन आदि पर बात करता है. अपने वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते सारामागो का उपन्यास महामारी के दिनों में हमारे अनुभवों की याद दिला सकते हैं. … आखिर ऐसा क्यों होता है कि संस्था के कार्यकर्ता अक्सर उसी किस्म का ‘गलत रास्ता’ अपनाते हैं और अधिक विचारणीय यह है कि आखिर इस तर्क को किस तरह स्वीकार किया जाता है और एक संस्था के तौर पर कोई कार्रवाई हुए बिना ही संस्था बेदाग छूटती है?
एक बड़ा रचनाकार दरअसल एक भविष्यवेत्ता भी कहा जा सकता है, जो अपने कलाम में, अपनी रचनाओं में हमारे भविष्य को पढ़ रहा होता है, भले ही हम गौर करना चाहें या ना करना चाहें. यह बात भी अविश्वसनीय लगती है कि सनातन संस्था से संबद्ध कुछ स्वेच्छाचारी कार्यकर्ता, एक बेहद अनुशासित एवं गोपनीय संगठन से स्वतंत्रा होकर विस्फोटों को अंजाम दें तथा इस पूरे प्रसंग की संगठन के किसी वरिष्ठ नेता को कोई जानकारी तक न हो.’
इस साल ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कोंकणी लेखक दामोदर मौउजो के उपन्यासों, कहानियों में अक्सर हम उस आसन्न भविष्य से रूबरू होते हैं और अपने आप से पूछ बैठते हैं कि दक्षिणी गोवा के अपने गांव माजोरडा के अपने दुकान में बैठे हुए अपनी साहित्य रचना शुरू किए इस लेखक ने आखिर कहां उस भविष्य का स्पंदन महसूस किया होगा.
प्रश्न उठता है कि आज जब साहित्य के क्षेत्र में ‘अभूतपूर्व योगदान’ के लिए वह सम्मानित हो रहे हैं, तो क्या इस बहाने उठी चर्चा महज साहित्य की सीमाएं तक ही महदूद रहेगी या शेष समाज को अपने आगोश में ले लेगी. क्या हमारे जिस भविष्य को वह अपनी कहानियों, उपन्यासों में चित्रित कर रहे हैं, या सार्वजनिक तौर पर ऐसे मसलों पर भी बोलते रहे हैं, हम उस पर भी इसी बहाने बात करेंगे?