दलबदलू नेताओं पर भरोसा, सवर्णों के वोट को नजरअंदाज... घोसी उपचुनाव की हार ने BJP को दिए ये 5 सबक
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हर हार से सबक मिलता है. बीजेपी को घोसी उपचुनाव में मिली बड़ी हार उसे मूल्यांकन का मौका दे रही है. 2024 में इंडिया गठबंधन से अगर बीजेपी को आगे निकलना है या 2014 और 2019 वाली सफलता दोहरानी है तो अपनी रणनीति बदलनी होगी.
देश में इंडिया बनाम एनडीए की 2024 की फाइट की रिहर्सल कहे जाने वाले घोसी उपचुनाव से बीजेपी के अंदर हलचल तो जरूर होगी. इतनी बड़ी हार के बारे में पार्टी ने कतई नहीं सोचा होगा. हार के कारणों पर पार्टी के अंदर तमाम तरह के चिंतन मनन होंगे. कुछ लोग जिम्मेदार भी ठहराए जाएंगे पर असली कारणों पर अगर पार्टी ने गौर नहीं किया तो 2024 के लोकसभा चुनावों में जादुई आंकड़ा छूना मुश्किल हो जाएगा. पार्टी के अंदर की कलह की चर्चा करना बेमानी है, क्योंकि वो तो घर की खेती है, कभी भी खत्म की जा सकती है. पर बाहर की चुनौतियों से निपटना मुश्किल जरूर होगा.
दलबदलू नेताओं पर अब जनता भरोसा नहीं कर रही
घोसी उपचुनाव की इतनी बड़ी हार भारतीय जनता पार्टी को यह सबक सिखा गई है कि अपने लाभ के लिए दल बदलने वाले नेताओं को जनता पसंद नहीं करती. ऐसे नेताओं के फॉलोअर भी समझते हैं कि उनका नेता हमारे वोटों को क्यों शिफ्ट करना चाहता है. किसी भी नेता के एक बार पार्टी छोड़ने को उसके समर्थक माफ कर देते हैं पर जब यह क्रम बार-बार होने लगता है तो समर्थक भी भड़क जाते हैं. दारा सिंह चौहान के कांग्रेस से होते हुए बीएसपी, सपा फिर बीजेपी फिर सपा और फिर बीजेपी में आने को समर्थक पचा नहीं सके. वो जानते हैं कि ऐसा नेता जो अपने लाभ के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता कर रहा है उसका कोई भरोसा नहीं है .ओमप्रकाश राजभर की भी यही स्थित रही उन्होंने भी पहले बीजेपी के बड़े नेताओं से लेकर और योगी आदित्यनाथ तक को क्या कुछ नहीं कहा फिर मंत्री बनने की चाह में पार्टी में वापसी कर लिए. भारतीय जनता पार्टी को यह समझना होगा कि अपने हितों के लिए दल बदलने वाले नेताओं को अब पब्लिक वोट नहीं देने वाली है.
सवर्णों का वोट भी सहेजना जरूरी, धोखा मिल सकता है
पिछले कुछ चुनावों से पार्टी सवर्ण वोटरों को कैजुअली ले रही है. पार्टी नेताओं को लगता है कि सवर्णों का तो वोट मिलेगा ही. इसलिए सारा फोकस पिछड़े वर्ग और दलित वोटों के लिए होता है. घोसी चुनाव में अरिवंद शर्मा खुद भूमिहार बिरादरी से आते हैं पर अपनी बिरादरी तक का वोट नहीं दिला सके.अगर सवर्णों का भी वोट पूरा मिला होता बीजेपी की इतनी बड़ी हार नहीं होती. योगी आदित्यनाथ के नाम पर प्रदेश भर में राजपूत वोटों का ध्रुवीकरण होता रहा है पर जब एक स्थानीय उम्मीदवार भी राजपूत मिल गया तो लोगों का इरादा बदल गया.आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी को सवर्ण मतदाताओं के लिए भी काम करना होगा. उन्हें यह समझाना होगा कि उनके हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी.
मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण रोकने के लिए केवल पसमांदा से नहीं चलेगा काम
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