'दक्षिण के राज्यों की लोकसभा-राज्यसभा सीटें हो सकती हैं कम', जयराम रमेश ने क्यों कही ये बात?
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कांग्रेस नेता जयराम रमेश के एक ट्वीट ने दक्षिण के राज्यों की चिंता बढ़ा दी है. दरअसल उन्होंने कहा कि अगर देश की आबादी ऐसे ही बढ़ती रही तो परिवार नियोजन में अग्रणी दक्षिण के राजय लोकसभा और राज्यसभा में अपनी सीटें गंवा सकते हैं क्योंकि भारत में राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को सीट आवंटन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बढ़ती आबादी की वजह से लोकसभा और राज्यसभा सीटों की संख्या प्रभावित होने को लेकर एक बयान दिया है. उन्होंने कहा कि भारत के दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बनने के बाद परिवार नियोजन में अग्रणी राज्यों की लोकसभा और राज्यसभा की सीटों की संख्या कम हो सकती है. उन्होंने कहा कि परिवार नियोजन में अग्रणी राज्यों में से ज्यादातर राज्य दक्षिण भारत के हैं.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है, इस पर बहुत अधिक चर्चा हुई है, लेकिन जिस चीज पर चर्चा नहीं हुई है, वह यह है कि परिवार नियोजन में अग्रणी राज्य (जिनमें ज्यादातर दक्षिणी राज्य शामिल हैं) लोकसभा और राज्यसभा में सीटें गंवा सकते हैं. इन राज्यों को आश्वासन दिए जाने की जरूरत है कि ऐसा नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि देश के सामने सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि 2026 में क्या होगा? उन्होंने कहा कि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश-दक्षिण के ऐसे राज्य हैं, जहां आबादी कम है. वहीं यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान में आबादी बढ़ रही है. रमेश ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक संशोधन लेकर आई थी, जिसमें कहा गया था कि 2026 तक कोई परिसीमन नहीं होगा यानी 2031 में होने वाली जनगणना के आधार पर सांसदों की संख्या में बदलाव किया जाएगा. भारत में राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को सीट आवंटन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है.
जयराम रमेश ने जिस संशोधन की बात की है, उसे समझने के लिए हमें 1950 के दौर में चलना होगा. आजादी के बाद देश के सामने कई समस्याएं थीं. इनमें सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती आबादी थी. इसे कंट्रोल करने के लिए सरकार ने 1950 के दशक में राज्य प्रायोजित परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू कर किया. जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रमों को प्रभावी तरीके से लागू करने में दक्षिण भारत के राज्य उत्तर भारत के राज्यों से आगे निकलने लगे. वहां, 60 के दशक में ही जनसंख्या नियंत्रित होने लगी.
1971 में जब जनगणना हुई तो पता चला कि उत्तर भारत की आबादी कम होने के बजाए बढ़ रही है. इसके बाद दक्षिण भारत के नेताओं के प्रतिनिधि मंडल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने इस मुद्दे को उठाया. उन्होंने कहा कि हम लगातार राज्यों की आबादी पर नियंत्रण कर रहे हैं, लेकिन उत्तर भारत के बीमारू राज्य जनसंख्या नियंत्रण के लिए संजीदा नहीं दिखाई दे रहे हैं. यहां आबादी बढ़ती जा रही है.
इसके बाद इंदिरा गांधी ने 1976 में संविधान में 42वां संशोधन कर दिया. इसे ही मिनी कॉन्स्टिट्यूशन कहा जाता है. इसके तहत जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन को समवर्ती सूची में शामिल कर दिया गया.
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