त्योहारों की साझा संस्कृति और साझा ऐतिहासिक चेतना आज कहां है
The Wire
क्या हम पहले के मुकाबले भावनात्मक रूप से अधिक असुरक्षित हो गए हैं? क्या हमारा भाव जगत पहले की तुलना में कहीं संकुचित हो गया है? किसी भी अन्य समुदाय के त्योहार में साझेदारी करने में अक्षम या उस दिन को हथिया लेने की जुगत लगाते हुए क्या हम हीन भावना के शिकार होते जा रहे हैं?
‘ईद मुबारक,’ शुक्रवार सुबह से बल्कि एक दिन पहले से ही ईद की की बधाइयों की झड़ी-सी लग गई है. केरल और कश्मीर में चांद पहले दिख गया, सो शायद पहले ईद हुई वहां और बाकी हिंदुस्तान में शुक्रवार को. अमेरिका की सीनेट में ईद का जिक्र देखा. बहुत तबियत नहीं हुई इस बार अपने उन दोस्तों को भी मुबारकबाद देने की जो पाबंदी से रोजा रखा करते थे और आज के दिन का जिनके लिए हम जैसे मौक़ापरस्तों के मुकाबले अधिक महत्त्व था. हम तो तरह-तरह की सेवइयों के लिए इसका इंतज़ार किया करते थे. उन रोज़ादारों में से भी कई इस बार रोज़ा नहीं रख पाए. कई तो इस वजह से कि उन्हें प्लाज़्मा देना था, कइयों को दिन-दिन भर मरते हुए लोगों को दफन करने और अनेक स्थलों पर अग्नि को समर्पित करने के लिए भागते रहना पड़ता था. उनका रोज़ा वही सेवा थी. और जाने कितने ऐसे हैं जो इस कोरोना संक्रमण के शिकार हुए और रोज़ा छोड़ने को बाध्य हुए. सो इस बार ईद के मुबारक होने के अलग मानी हैं.More Related News