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तीन बेटियों को पालने का सफ़र कैसा और कितना लंबा हो सकता है
BBC
बेटियों को पालने का सफ़र भी जादुई हो सकता है. तीन बेटियों की माँ, लेखिका और फ़िल्ममेकर नताशा बधवार के अनुभव.
मैं अपने माता-पिता की इकलौती बेटी हूँ. दो भाइयों के साथ बड़ी हुई हूँ, और बचपन में एक बहन के लिए बहुत तरसती थी. लेकिन बड़े होकर तो जैसे मेरी लॉटरी लग गई, जब मैं तीन बेटियों की माँ बनी. यह मेरे लिए एक जादुई सफ़र जैसा है.
अपने आस-पास के लोगों की तरह ही मुझे भी अपने बच्चों की परवरिश को लेकर शुरू में बहुत सारी ग़लतफ़हमियाँ थीं. फिर जैसे-जैसे साल गुज़रते गए, वह सारा आत्म-विश्वास और ज्ञान, जो कि मुझे लगता था कि मुझे क़ुदरत से एक वरदान की तरह मिला था, वो सब धीरे-धीरे हवा होते गए. अभी मैं पहले से हल्का महसूस करती हूँ और शायद पहले से ज़्यादा समझदार भी हो गई हूँ.
लेकिन इस दौरान जो सबक़ मैंने सीखे, वे किसी पुख़्ता नतीजे तक नहीं पहुँचते, वो आपस में टकराते भी हैं और हमेशा कारगर भी नहीं होते. यह सब बच्चों जैसा ही है, जिनसे ख़ुद मैंने हर चीज़ सीखी हैं निजी अनुभव के ज़रिए.
जब कभी भी मैं किसी उलझन में होती हूँ तो ख़ुद को यही समझाती हूँ कि फ़िलहाल थोड़ी देर के लिए शांत रहें. जैसा कि एक मशहूर गाना भी है- अभी तो पार्टी शुरू हुई है.
शादी के बाद हमारे तीन बच्चे होंगे, हमारी ऐसी कोई प्लानिंग नहीं थी. आप कह सकते हैं कि यह एक तरह से हमारी नियति थी. अगर आप सोच रहे हैं कि हम किस तरह के लोग हैं तो मैं बिल्कुल भी बुरा नहीं मानूँगी. व्यावहारिक तो हमलोग बिल्कुल भी नहीं हैं. मैं पहले ही इस बात को कह देती हूँ कि ज़्यादा सोच-समझकर हमलोग कोई काम नहीं करते हैं. अपने फ़ैसले भी इसी तरह कर लेते हैं और आप कह सकते हैं कि कुल मिलाकर हमलोग ख़ासे बेवक़ूफ़ हैं.