तीन बार बन चुकी हैं 'एक देश-एक चुनाव' के लिए कमेटियां, जानिए इसे लागू होने की राह में क्या हैं बाधाएं
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आजाद भारत में 'एक देश-एक चुनाव' की बात बहुत पहले से कही जाती रही है. पहले की सरकारों में भी इस पर बात होती रही है. हालांकि कुछ रिपोर्ट आदि से आगे कभी मामला नहीं बढ़ा. थोड़ा और पीछे चलें तो यह भी एक सत्य-तथ्य है कि, भारत में, 1967 तक एक साथ चुनाव कराने का चलन था.
केंद्र सरकार ने 'एक देश-एक चुनाव' के प्लान पर एक कदम और आगे बढ़ाते हुए अब उसे अमलीजामा पहनाने की तैयारी शुरू कर दी है. केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एक कमेटी का गठन किया है. इसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपी गई है. ये कमेटी एक देश-एक चुनाव को लेकर काम करेगी. सरकार ने ये कमेटी का गठन ऐसे समय किया है, जब इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि संसद के विशेष सत्र में एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल लाया जा सकता है. संसद का विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा.
1967 तक होते थे एक साथ चुनाव आजाद भारत में 'एक देश-एक चुनाव' की बात बहुत पहले से कही जाती रही है. पहले की सरकारों में भी इस पर बात होती रही है. हालांकि कुछ रिपोर्ट आदि से आगे कभी मामला नहीं बढ़ा. थोड़ा और पीछे चलें तो यह भी एक सत्य-तथ्य है कि, भारत में, 1967 तक एक साथ चुनाव कराने का चलन था. लेकिन 1968 और 1969 में कुछ विधान सभाओं और दिसंबर 1970 में लोकसभा के विघटन के बाद, चुनाव अलग से कराए जा रहे हैं. हालांकि दोबारा से एक साथ चुनाव कराने की संभावना 1983 में चुनाव आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में उठाई गई थी. इसके बाद में तीन अन्य रिपोर्ट में इस अवधारणा से जुड़े और पहलुओं पर गहनता से अध्ययन किया गया.
विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने मई 1999 में अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा था: "हर साल और सत्र के बाहर चुनावों के चक्र को समाप्त किया जाना चाहिए. हमें उस स्थिति में वापस जाना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं. नियम यह होना चाहिए कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए पांच साल में एक बार एक चुनाव हो."
संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट (2015) साल 2015 में डॉ. ई.एम. सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय के लिए संसदीय स्थायी समिति बनाई गई. इस समिति ने 17 दिसंबर, 2015 को 'लोकसभा (लोकसभा) और राज्य विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की व्यवहारिकता' पर अपनी रिपोर्ट सामने रखी.
समिति ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने से ये बाधाएं हैं
(i) अलग-अलग चुनावों के संचालन के लिए वर्तमान में किया जाने वाला भारी खर्च;
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