तालिबान से रिश्ते मजबूत करना क्यों भारत के लिए जरूरी? जानें इस 'दोस्ती' के क्या हैं नफा-नुकसान
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भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने पिछले दिनों दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की है. इस मुलाकात ने कई बहसों को जन्म दिया है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर भारत, तालिबान की ओर क्यों दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है? इस रिश्ते के मायने क्या हैं? इसके फायदे क्या हैं?
इस बात में कोई शक नहीं है कि विदेश नीति में सबसे जरूरी होती है 'नेबरहुड फर्स्ट'वाली पॉलिसी. किसी देश के पड़ोसी देशों के साथ संबंध उसके लिए कई मायनों में अहम होते हैं. नेबरहुड की बात इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत-तालिबान के बीच अब एक नए रिश्ते की शुरुआत देखने को मिल रही है. दरअसल, भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने पिछले दिनों दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की है. इस मुलाकात ने कई बहसों को जन्म दिया है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर भारत, तालिबान की ओर क्यों दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है? इस रिश्ते के मायने क्या हैं? इसके फायदे क्या हैं? इसके नुकसान क्या हैं? पाकिस्तान और अन्य देशों के लिए ये कितना बड़ा झटका है...
करीब 4 साल बाद दिखी ये कवायद
भारत-अफगानिस्तान के रिश्ते हमेशा उलझे ही रहे हैं. जब भी देश में तालिबान का दबदबा दिखता है भारत दूरी बना लेता है. 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद भी यही देखा गया. 90 के दशक में भी जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था तब भी ये तस्वीर देखने को मिली थी. लेकिन अब तालिबान जब देश में पूरी तरह से जम गया है तो कई देशों के साथ उसके रिश्ते भी सुधर रहे हैं. इस लिस्ट में अब भारत का नाम भी जोड़ा जा रहा है.
क्यों भारत बढ़ा रहा दोस्ती का हाथ
जानकारों की मानें तो भारत और तालिबान सरकार के बीच हुई उच्च स्तरीय वार्ता यह दिखाती है कि भारत अब इस क्षेत्र के बदलते राजनीतिक हालात को नए नजरिये से देख रहा है. अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से पहले भारत ने दो दशक के दौरान अफगानिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण, स्कॉलरशिप्स और नए संसद भवन के निर्माण जैसी मुख्य परियोजनाओं पर निवेश किया था. लेकिन तालिबान की सरकार के आने के बाद से ये चीजें तेजी से कहीं पीछे छूट गईं थीं.
तालिबान के कब्जे को भारत के लिए झटका माना गया था. तब की स्थितियां ये बताती थीं कि तालिबान, पाकिस्तान का वफादार है और उसका प्रभाव भारत के लिए रणनीतिक और सुरक्षा के नजरिए से खतरा है. लेकिन पिछले 3 साल में काफी कुछ बदल गया है, जिसके कारण ये नई दोस्ती की इबारत देखी जा रही है.
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डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले वॉशिंगटन डीसी में कड़ा पहरा है. पुलिसकर्मियों की गाड़ियां लगातार पूरे इलाके की रेकी कर रही हैं. सबसे कड़ा पहरा कैपिटल हिल बिल्डिंग के बाहर है, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह होना है. इस बीच आज तक की टीम वॉशिंगटन डीसी में तैनात है. पढ़िए, रोहित शर्मा की ग्राउंड रिपोर्ट...
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डोनाल्ड ट्रंप वॉशिंगटन पहुंच चुके हैं, वो फ्लोरिडा से स्पेशल विमान से परिवार समेत वॉशिंगटन पहुंचे. इस फ्लाइट को स्पेशल एयर मिशन-47 नाम दिया गया था. मिशन-47 का मतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे. ट्रंप के शपथ ग्रहण को लेकर एक तरफ उनके विरोधी गुस्से में हैं, जबकि उनके समर्थक निराश हैं. निराशा की वजह संसद के अंदर होने वाला शपथ ग्रहण है.