तालिबान वाले अफ़ग़ानिस्तान में चीन की राह में क्या हैं रोड़े?
BBC
हाल ही में चीन ने अफ़ग़ानिस्तान को 3.1 करोड़ डॉलर की मदद की घोषणा की थी. तालिबान की सरकार को लेकर चीन उत्साहित भी है और चिंतित भी. लेकिन क्या अमेरिका की जगह वो भर पाएगा?
किसी भी घटनाक्रम को दो नज़रिए से देखा जा सकता है. किसी के लिए वो 'आपदा' बन जाती है तो दूसरे के लिए 'अवसर'.
विदेश मामलों के कई जानकार मानते हैं कि अमेरिका के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में जो जगह बनी है, चीन उसे भरने की कोशिश करेगा.
एक तरफ़ तो चीन की चिंता है कि वीगर मुसलमान और 'चीन विरोधी आतंकवादी संगठन' ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) के सदस्य अफ़गानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल उसके ख़िलाफ़ गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कर सकते हैं.
तो दूसरी तरफ़ चीन की नज़र अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन में दबे खनिज संसाधनों पर हैं. वो ये भी चाहता है कि अफ़ग़ानिस्तान भी उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना का हिस्सा बन जाए, ताकि यूरोप-एशिया में उसका दबदबा रहे.
लेकिन चीन की चिंता और निवेश के बीच की राह इतनी भी आसान नहीं, जितनी प्रतीत होती है.