
तालिबान पर पाकिस्तान के रुख़ का भारत पर क्या असर हो सकता है? - प्रेस रिव्यू
BBC
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान ने ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटी हैं. पाकिस्तान के तालिबान के प्रति रुख़ का भारत पर क्या असर हो सकता है. पढ़िए अख़बारों की सुर्ख़ियां.
"इस समय जब हम अफ़ग़ानिस्तान सरकार के इतनी तेज़ी से गिर जाने और तालिबान के सत्ता में आने पर विचार कर रहे हैं, तब हमें काबुल और दिल्ली के रिश्तों को लेकर के एम पणिक्कर (पूर्व भारतीय राजदूत) के विचारों पर एक बार फिर मनन करने की ज़रूरत है." ये कहना है कि साउथ एशियन स्टडीज़ के निदेशक और पत्रकार सी राजामोहन का. अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपे अपने लेख में राजामोहन लिखते हैं, "पणिक्कर ने बताया था कि काबुल घाटी में जो भी होता है, आख़िरकार वह गंगा के मैदानों के साम्राज्यों को प्रभावित करता है.'' ये कहते हुए वह उन तमाम हमलावरों की ओर इशारा कर रहे थे जिन्होंने उत्तर भारत के केंद्र पर हमला करने से पहले हेरात और काबुल की घाटी में ख़ुद को मज़बूत किया. दक्षिण एशिया में ताज़ा घटनाक्रम भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बार-बार आने वाले एक समीकरण की ओर इशारा करता है. साल 1979 में अफ़ग़ानिस्तान पर हुए सोवियत हमले, 2001 में न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन पर आतंकी हमले और उसके बाद अमेरिकी अभियान का इस उपमहाद्वीप की घरेलू, अंतर-क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर पड़ा है. इसमें कोई शक़ नहीं है कि रविवार को काबुल में तालिबान के प्रवेश के बाद अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच रिश्तों का एक नया अध्याय शुरू हुआ है. लेकिन ये पैटर्न तब और दिलचस्प हो जाता है जब 'इंडस राइडर' को 'पणिक्कर थीसिस' के साथ देखते हैं.More Related News