
तालिबान को 20 साल की ‘ख़ुफ़िया मदद’ से सत्ता दिला देना आईएसआई की बड़ी उपलब्धि है
The Wire
इस बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता है कि वो अमेरिका, जिसने 2001 से 2020 तक ख़ुफ़िया जानकारी पर 1000 अरब डॉलर से अधिक ख़र्च किए हैं, इतना अयोग्य था कि उसे दो दशकों से अधिक समय तक तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंधों का कोई अंदाज़ा ही नहीं हुआ.
तालिबान ने काबुल में 15 अगस्त को प्रवेश कर लिया था, लेकिन उन्होंने आधिकारिक रूप से अमेरिका पर अपनी विजय की घोषणा 19 अगस्त को की क्योंकि 19 अगस्त अफ़ग़ानिस्तान का स्वाधीनता दिवस भी है और वे इसे अमेरिकी क़ब्ज़े से आज़ादी के रूप में दिखाना चाहते थे.
उनकी सरकार 7 सितंबर को बनी. उसके तीन दिन पूर्व ही 4 सितंबर को, यानी सत्ता परिवर्तन के लगभग दो हफ्ते बाद ही काबुल में एक बड़े ख़ास विदेशी मेहमान पधारे. ये थे पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई (इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस) के चीफ़ लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद.
अमूमन इंटेलिजेंस एजेंसियों के चीफ़ लोगों की यात्रायें भी गुप्त रखी जाती हैं लेकिन जनरल हमीद बेतक़ल्लुफ़ी के साथ, बिना टाई के ब्लेज़र पहने बड़े रिलैक्स्ड मूड में काबुल के फाइव-स्टार होटल सरेना की लॉबी में यूं कॉफ़ी पीते नज़र आए , जैसे कि अपने घर ही आए हों.
यही नहीं, उन्होंने पत्रकारों से मिलने में भी परहेज नहीं किया. जब एक पश्चिमी पत्रकार ने उनसे अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य के बारे में पूछा तो उन्होंने बड़े सहज भाव से कहा, ‘चिंता न करिए, सब ठीक होगा.’ गरज यह कि देश के अपने अधिकारी नहीं, एक विदेशी अधिकारी परदेस से आकर बता रहे हैं कि किसी दूसरे देश में सब ठीक रहेगा. इसका क्या मतलब है?