
तालिबान के लिए आज भी ख़्वाब और पहेली क्यों है 'पांच शेरों' वाला ये इलाका?
BBC
इस इलाके ने सोवियत सेना को चुनौती दी. तालिबान आज तक इस पर कब्ज़ा करने का ख़्वाब देख रहे हैं. क्या है ताक़त है इसकी मिट्टी में.
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल से क़रीब 30 मील दूर तालिबान विरोधी कई हज़ार लड़ाकों के संकीर्ण प्रवेश द्वार वाली एक सुदूर घाटी में तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए इकट्ठा होने की ख़बर है. देश के हाल के अशांत इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं है, जब नाटकीय और प्रभावशाली पंजशीर घाटी एक फ़्लैशपॉइंट बनकर उभरी है. 1980 के दशक में सोवियत सेना और 90 के दशक में तालिबान के ख़िलाफ़ यह विरोधियों का एक मज़बूत गढ़ रही है. वहां मौजूद नेशनल रेज़िस्टेंस फ़्रंट ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान (एनआरएफ़) ने दुनिया को इस घाटी की ताक़त फिर से याद दिला दी है. एनआरएफ़ के विदेशी मामलों के प्रमुख अली नज़ारी ने बीबीसी को बताया, "अपनी ताक़त के बावज़ूद रूस की लाल सेना हमें हराने में असमर्थ रही और 25 साल पहले तालिबान भी. उन सबने घाटी पर कब्ज़ा करने की कोशिश की पर वे असफल रहे. उन्हें यहां करारी हार का सामना करना पड़ा."More Related News