
डिफॉल्ट ज़मानत का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपरिहार्य हिस्सा है: दिल्ली हाईकोर्ट
The Wire
अदालत ने दहेज हत्या के एक आरोपी को ज़मानत देते हुए कहा कि यदि निर्धारित अवधि में चार्जशीट दायर नहीं की जाती, तो विचाराधीन क़ैदी को ज़मानत पर रिहा किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी के स्वतंत्र होने के अधिकार को जांच जारी रखने और आरोपपत्र दायर करने के राज्य के अधिकार पर प्राथमिकता दी जाती है.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निर्धारित अवधि में आरोपपत्र दायर नहीं होने पर जमानत मांगने का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक अपरिहार्य हिस्सा भी है, जिसे महामारी की स्थिति के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है.
उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी के स्वतंत्र होने के अधिकार को जांच जारी रखने और आरोपपत्र दायर करने के राज्य के अधिकार पर प्राथमिकता दी जाती है.
कानून के अनुसार, एक बार गिरफ्तारी के बाद मामले में जांच के लिए अधिकतम अवधि, जो 60, 90 और 180 दिन (अपराध की प्रकृति के मुताबिक) है, प्रदान की जाती है और यदि इस अवधि में कोई आरोपपत्र दायर नहीं किया जाता है, तो आरोपी जमानत पर रिहा होने का हकदार हो जाता है, जिसे ‘डिफॉल्ट’ (आरोप पत्र दायर करने में चूक के कारण मिली) जमानत कहते हैं.
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि एक विचाराधीन कैदी को हिरासत में भेजने या उसकी हिरासत अवधि के विस्तार के आदेश को एक न्यायिक कार्य माना जाता है, जिसमें दिमाग के उचित उपयोग की आवश्यकता होती है.