डिजिटल मीडिया पर सरकार का हमला नरेंद्र मोदी के डर को दिखाता है
The Wire
दिग्गज सोशल मीडिया मंचों और ऑनलाइन न्यूज़ मीडिया के साथ नये नियमों को लेकर विवादास्पद बहस ऐसे मौके पर हो रही है जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर सामने आई अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. आलोचनाओं के दमन में लगी सरकार ने खु़ुद को अपने ही बुने चक्रव्यूह में फंसा लिया है.
मोदी सरकार और विश्व की दिग्गज आईटी कंपनियों, खासकर ट्विटर और फेसबुक के बीच चल रही रस्साकशी काफी पाखंडपूर्ण है, खासकर यह देखते हुए कि सत्ताधारी भाजपा सरकार -अब तक- सोशल मीडिया की प्रसार करने शक्ति की इस्तेमाल करने के मामले में सबसे सफल रही है. भाजपा ने न सिर्फ इन मंचों का इस्तेमाल जीत सुनिश्चित करनेवाले राजनीतिक अभियानों का आगाज करने के लिए किया है, बल्कि इसकी कुख्यात आईटी सेल ने प्रोपगेंडा फैलाने और धार्मिक अल्पसंख्यकों, बुद्धिजीवी आलोचकों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए इसका इस्तेमाल दुरुपयोग की हद तक किया है. अंदरखाने की जानकारी रखने वाले व्हिस्लब्लोअर्स के विवरणों, खासकर पिछले साल फेसबुक के अंदर से आए विवरणों ने यह बताया कि मोदी तंत्र ने कितनी सफलता के साथ, इसके भारतीय पॉलिसी हेड के दफ्तर के माध्यम से इस प्लेटफॉर्म पर पार्टी की लकीर पर चलने और इसके तहत खासतौर पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहरीले हेट स्पीचों के द्रुत प्रसार को लेकर अपनी आंखें मूंदे रखने का दबाव बनाया. ऐसा कई यूज़र्स के द्वारा बेहद नफरत से भरी सामग्रियां लगातार पोस्ट करने से फेसबुक के अपने ही बनाए कम्युनिटी स्टैंडर्ड का कई शिकायतों के बावजूद खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया गया. इसलिए ट्विटर और फेसबुक जैसे मंचों के खिलाफ सरकार के हालिया बयानों और फेसबुक के स्वामित्व वाले मैसेजिंग प्लेटफॉर्म वॉट्सऐप से एंड टू एंड इनक्रिप्शन से समझौता करने की मांग को देखते हुए यह सवाल पूछना लाजिमी हो जाता है कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है?More Related News