डकैती, साजिश और पुलिस की थ्योरी... अभी तक साफ नहीं है मंगेश यादव एनकाउंटर की असली कहानी
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हाल के वक़्त में यूपी क्या देश के किसी भी राज्य में किसी डकैती के केस को लेकर मीडिया के सवालों के जवाब देने के लिए एक साथ बड़ा लाव-लश्कर शायद ही कभी इकट्ठा हुआ हो. पर यहां मामला थोड़ा दूसरा था. बात डकैती की नहीं, सवाल था डकैती से जुड़े मंगेश यादव के एनकाउंटर का.
Mangesh Yadav Encounter Controversy: बोला बहुत कुछ पर बताया नहीं. पुलिस ने बोला कि कैसे सुल्तानपुर में भरत ज्वेलर्स की दुकान में डकैती की साजिश रची गई. उस साजिश में कौन कौन लोग शामिल थे. किस-किस ने इस साजिश को अंजाम देने के लिए मोटरसाइकिल चुराई. लूट का सोना कितना बरामद हुआ. लेकिन ये नहीं बताया कि मंगेश यादव का एनकाउंटर असली था या फिर फर्जी? ये नहीं बताया कि 2 सितंबर को मंगेश यादव को उठाया गया था या नहीं? ये भी नहीं बताया कि मंगेश यादव का एनकाउंटर चप्पल में कैसे हो गया? डकैती के किसी मामले में यूपी पुलिस के इतिहास में इससे पहले शायद ही इससे बड़ी कोई प्रेस कांफ्रेंस हुई हो. इसी से इस केस की अहमियत को समझा जा सकता है.
डकैती के मामले में सबसे बड़ी प्रेस कांफ्रेंस लखनऊ पुलिस मुख्यालय में टेबल कुर्सी माइक सब सेट हो चुका था. कैमरे के पीछे तमाम क्राइम रिपोर्टर अपनी-अपनी सीट पकड़ चुके थे. और तभी एक-एक कर यूपी पुलिस के तीन सबसे आला अफसर पहले से तय अपनी कुर्सियों पर बैठ गए. बीच में यूपी पुलिस के डीजीपी बैठे प्रशांत कुमार थे. उनके बायीं तरफ अमिताभ यश बैठे थे, जो यूपी के एडीजी लॉ एंड आर्डर और एसटीएफ चीफ हैं. जबकि प्रशांत कुमार की दाहिनी तरफ एडीजी लखनऊ ज़ोन एसबी शिरोडकर बैठे थे.
मंगेश के एनकाउंटर पर कुछ नहीं बोले डीजीपी हाल के वक़्त में यूपी क्या देश के किसी भी राज्य में किसी डकैती के केस को लेकर रिपोर्टर के सवालों के जवाब देने के लिए एक साथ इतना बड़ा लाव-लश्कर शायद ही कभी इकट्ठा हुआ हो. पर यहां मामला थोड़ा दूसरा था. बात डकैती की नहीं, सवाल डकैती से जुड़े मंगेश यादव के उस एनकाउंटर का था, जिसे लेकर यूपी पुलिस पर ऊंगलियां उठ रही हैं. पर कमाल देखिए डकैती से लेकर राज्य के जीडीपी तक की बात डीजीपी साहब ने कर दी. लेकिन मंगेश यादव के एनकाउंटर पर उठ रहे सवालों का ऐसा एक भी जवाब नहीं दिया, जो असली या फर्ज़ी एनकाउंटर के शक को दूर कर सकता हो.
यूपी पुलिस ने पूरी तैयारी के साथ प्रेस कांफ्रेंस की थी. प्रेस कांफ्रेंस के बीच में बाकायदा कुछ वीडियो भी चलाए गए. इस वीडियो के ज़रिए 28 अगस्त की दोपहर करीब पौने एक बजे सुल्तानपुर के भरत ज्वेलर्स में डाका डालने वाले पांच लुटेरों की बिल्कुल क्लीयर तस्वीर भी दिखाई गई. इतना ही नहीं यूपी पुलिस ने इन तस्वीरों पर ग्राफिक्स का भी ठीक वैसे ही इस्तेमाल किया, जैसे अमूमन न्यूज चैनल वाले करते हैं. हर लुटेरे के इमेज को फ्रीज़ कर एक से पांच नंबर तक की गिनती दिखाई गई और सर्कल में उनके नाम भी.
सवाल को घुमा गए डीजीपी साहब ये सारी मेहनत इसलिए थी ताकि ये दिखाया जा सके कि इस लूटपाट में जो पांच लुटेरे शो रूम के अंदर थे, उनमें से एक मंगेश यादव भी था. हालांकि चेहरा किसी का नहीं दिख रहा था. जाहिर है सवाल तो बनता था कि बिना चेहरे के कैसे मान लें कि ये मंगेश है? एक रिपोर्टर ने पूछ भी लिया. इस डीजीपी साहब झुंझलाते हुए पता नहीं सवाल को कहां से कहां ले गए.
सच है मंगेश का आपराधिक इतिहास मंगेश यादव के एनकाउंटर को लेकर उठ रहे सवालों के बीच शायद यूपी पुलिस ये भूल गई थी कि सुल्तानपुर के भरत ज्वेलर्स में हुई डकैती पर किसी को शक नहीं है. वहां डाका पड़ा, ये सच है. डकैत कैमरे में क़ैद हुए ये भी सच है. इन पांचों नक़ाबपोशों में एक मंगेश यादव भी हो सकता है. ये भी मुमकिन है. मंगेश यादव पर चोरी के आठ पुराने केस हैं, ये भी सही है. वो दो बार जेल गया, इसे भी नहीं झुठलाया जा सकता. पर सवाल ये सब थे ही नहीं.
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