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'टिकट वितरण सही ना होना उनकी सोच...,' किरण और श्रुति चौधरी के कांग्रेस छोड़ने पर बोले भूपिंदर सिंह हुड्डा
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हरियाणा में किरण चौधरी ने कांग्रेस से अपना चार दशक पुराना नाता तोड़ लिया है. उनके साथी बेटी श्रुति चौधरी ने भी पार्टी छोड़ दी है. हरियाणा की राजनीति में मां-बेटी का अच्छा खासा दखल है. बुधवार को दोनों बीजेपी जॉइन करेंगी. राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. माना जा रहा है कि मां-बेटी के बीजेपी में आने से पार्टी को इसका लाभ मिल सकता है.
हरियाणा में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. एमएलए किरण चौधरी और उनकी पूर्व सांसद बेटी श्रुति चौधरी ने पार्टी छोड़ दी है. दोनों आज यानी बुधवार को दिल्ली में बीजेपी जॉइन करेंगी. इसे लेकर राज्य की सियासत भी गरमा गई है. हरियाणा के पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा से लेकर पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह का बयान आया है.
हरियाणा में इसी साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसे लेकर राजनीतिक दल तैयारियों में लगे हैं. राज्य में अभी बीजेपी की सरकार है और नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री हैं. चुनाव से ठीक पहले किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी को बड़ा नुकसान माना जा रहा है. मां-बेटी लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण से पार्टी हाईकमान से नाराज चल रहीं थीं.
इस संबंध में कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा, टिकट वितरण सही ना होना किरण चौधरी की सोच है. सही टिकट वितरण हुआ था, इसलिए कांग्रेस की 5 सीटें आईं. पूरे देश में इंडिया ब्लॉक के वोट शेयर को देखा जाए तो हरियाणा के अंदर कांग्रेस का वोट प्रतिशत बहुत ज्यादा है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी हाफ हो गई है. विधानसभा चुनाव में पूरी साफ हो जाएगी.
महेंद्रगढ़ से सशक्त उम्मीदवार थीं श्रुति चौधरी
पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता बृजेंद्र सिंह ने कहा, श्रुति चौधरी पहले सांसद भी रही हैं और महेंद्रगढ़ भिवानी सीट से सशक्त उम्मीदवार थीं, इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन पार्टी का अपना फैसला होता है. पार्टी ने जो फैसला लिया होगा, वो सारे हालात देखकर लिया होगा. अब चुनाव के नतीजे आ चुके हैं तो उन बातों को छोड़ कर विधानसभा चुनाव की तैयारी करनी चाहिए. बृजेंद्र का कहना था कि टिकट वितरण को लेकर एक लंबी प्रोसेस होती है. पहले स्क्रीनिंग कमेटी बैठती है. ऊपर नाम भेजे जाते हैं. फिर CEC के पास नाम आते हैं. उसके बाद टिकटों का निर्धारण होता है. टिकट तो एक को मिलता है. दावेदार कई लोग होते हैं. बृजेंद्र बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे.
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आरएसएस से 32 साल तक जुड़ी रहीं गुप्ता ने 1992 में दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. 1995-96 में वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की सचिव और 1996-97 में इसकी अध्यक्ष रहीं. 2002 में वह भाजपा में शामिल हुईं और पार्टी की युवा शाखा की राष्ट्रीय सचिव रहीं.
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महाराष्ट्र के डिप्टी CM एकनाथ शिंदे ने एक जोरदार बयान दिया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि उन्हें हल्के में न लिया जाए. शिंदे ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति उन्हें हल्के में लेगा, तो वे उसकी टांग पलट देंगे. हालांकि, उन्होंने यह भी साफ किया कि उनका और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कोई मतभेद नहीं है.
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रेखा गुप्ता ने बुधवार शाम दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना से मुलाकात की और राष्ट्रीय राजधानी में सरकार बनाने का दावा पेश किया. उनके साथ राज्य भाजपा पर्यवेक्षक रविशंकर प्रसाद और ओपी धनखड़, शहर भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा और दिल्ली के सांसद बांसुरी स्वराज, प्रवीण खंडेलवाल और कमलजीत सहरावत भी थे. भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत जय पांडा भी राज निवास में मौजूद थे.
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रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी अब महिला मुख्यमंत्रियों की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है. दिल्ली ने कई महिला मुख्यमंत्री देखी हैं, जिनमें कांग्रेस की शीला दीक्षित का 15 साल का शासन भी शामिल है. साथ ही बीजेपी उन महिला वोटर्स पर भी फोकस कर रही है जिन्होंने चुनाव में पार्टी के पक्ष में जमकर मतदान किया है.
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रेखा गुप्ता का नाम दिल्ली की CM के रूप में चुना गया है, जो दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री और BJP की दूसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें इस उपलब्धि पर बधाई दी है. बीजेपी ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का संदेश दिया है. रेखा गुप्ता कल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगी.
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महाकुंभ में अब तक 53 करोड़ से अधिक लोग स्नान कर चुके हैं और मुख्यमंत्री का अगला लक्ष्य 60 करोड़ का है. इतने बड़े आयोजन में व्यवस्था और सुरक्षा का ध्यान रखना एक बड़ी चुनौती है. सोचिए, इतनी विशाल संख्या में लोग कैसे इस आयोजन में शामिल होते हैं और इस प्रक्रिया के दौरान व्यवस्थाओं का कितना महत्व होता है.
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अलका लांबा ने 1995 में नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी. वहीं, रेखा गुप्ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से महासचिव चुनी गई थीं. उस समय दोनों युवा नेता छात्र राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बना रही थीं. अब, सालों बाद रेखा गुप्ता ने अपनी राजनीतिक यात्रा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है.