
झारखंड में क्यों होने लगी है बेमौसम बरसात?
BBC
झारखंड में मौसम की मार झेल रहा है. किसान, आदिवासी और ग़रीबों पर इसका सबसे बुरा असर हो रहा है. क्या है इसकी वजह?
'फूले कांस सकल महि छाई, जिमि वर्षा रितु प्रगट बुढ़ाई.' - गोस्वामी तुलसीदास के इस प्रसिद्ध दोहे का मतलब है कि धरती पर अगर कांस के फूल खिल जाएं, तो यह बारिश के मौसम के बुढ़ापे का प्रतीक है. उन्होंने 'रामचरितमानस' में सदियों पहले इन पंक्तियों को लिखा था. तबसे इस दोहे की चर्चा होती रही है. इसके उदाहरण दिए जाते रहे हैं, लेकिन झारखंड में पिछले कुछ सालों में इसकी सार्थकता खत्म होती दिख रही है.
अब कांस के सफेद फूल खिल तो जाते हैं लेकिन बारिश उसके बाद भी इस तरह आती है मानो वह अपने यौवन पर हो. इस कारण फसलें बर्बाद होती हैं. बाढ़ आती है और लोगों को परेशानियां होती हैं.
इस साल अक्टूबर के दूसरे और तीसरे सप्ताह में आई चक्रवाती बारिश ने इस दोहे की प्रासंगिकता को फिर से चुनौती दी है. यह संयोग ही है कि जिन दिनों झारखंड के लोग इस बेमौसम बारिश की मार झेल रहे थे, उससे कुछ ही दिनों पहले भारत सरकार की एक रिपोर्ट (क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी एसेसमेंट फार एडाप्टेशन प्लानिंग इन इंडिया) से खुलासा हुआ कि जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभावों के लिहाज से झारखंड भारत के सर्वाधिक संवेदनशील राज्यों में शामिल है.
इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस, बेंगलुरु और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी और आईआईटी मंडी के स्कॉलर्स इस शोध में शामिल थे. कुछ साल पहले झारखंड सरकार ने भी इस तरह की एक रिपोर्ट (झारखंड एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेंट चेंज) तैयार कराकर अपनी कार्ययोजना सार्वजनिक की थी.
वैसे तो यहां के सभी 24 जि़ले इससे प्रभावित हो हैं, लेकिन साहिबगंज और पाकुड़ जिले वल्नरेबिलिटी इंडेक्स में क्रमशः पहले और दूसरे नंबर पर हैं. इन जिलों ने इस साल दो बार बाढ़ की त्रासदी झेली. बीते सालों में इन्हीं जिलों में भयंकर सूखा पड़ा था.