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झारखंड: आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाएं बचा रही हैं ज़मीनी लोकतंत्र
The Wire
आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं ने आदिवासियों को सशक्त किया है, गांवों में उम्मीद जगाई है, इसके कई उदाहरण झारखंड के गुमला ज़िले में देखने को मिलते हैं. चैनपुर प्रखंड की आदिवासी महिलाएं बताती हैं कि ग्राम सभा की मदद से ग्रामीणों ने आस-पास के जंगलों, पहाड़ों, चट्टानों, नदियों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाया ह
लोकतंत्र पर से लोगों का भरोसा उठ रहा है. कथित सभ्य समाज के ढांचे में भी कई लोगों को बदलाव की उम्मीद नहीं दिखती. समाज में बढ़ते व्यक्तिवाद ने एक दूसरे पर भरोसा करने के जीवन-मूल्य को भी प्रभावित किया है. संवाद के रास्ते बंद दिखाई पड़ते हैं. स्थितियों को व्यापकता से देखने-समझने का नजरिया, जिसमें शोषित और पिछड़े तबके के लोगों के लिए भी रोजी-रोजगार के साथ एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए जगह हो, पर भरोसा कम हुआ है.
ऐसे में आदिवासी इलाकों में अस्तित्व के संघर्ष के साथ-साथ आपसी सहयोग से जमीनी लोकतंत्र को बचाने की एक जमीनी कोशिश दिखाई पड़ती है. झारखंड के अलग-अलग इलाकों में जमीनी लोकतंत्र की पड़ताल करने पर आदिवासी गांवों की नई कहानियां सामने निकलकर आ रही हैं.
आदिवासी इलाकों में ग्राम सभा किस तरह काम कर रही है और इसने किस तरह आदिवासी स्त्रियों को सशक्त किया है, गांवों में उम्मीद जगाई है, इसके कई उदाहरण मिलते हैं. ग्राम सभा की मदद से गांव के लोगों ने अपने आस-पास के जंगलों, पहाड़ों, चट्टानों, नदियों की सुरक्षा का जिम्मा उठाया है. इसमें स्त्रियों की भूमिका महत्वपूर्ण है.
सामूहिक निर्णय, प्रयास और साझेदारी से लोग अपने इलाकों में अपनी समस्याओं का निदान कैसे कर रहे हैं, इसकी बानगी देखने को मिलती है. ऐसा ही एक गांव है झारखंड के गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड का रामपुर गांव.