ज्वार-बाजरे को सुपरफूड क्यों कहा जा रहा है
BBC
भारत में 1960 और 2015 के बीच चावल के उत्पादन में 800 फ़ीसद की वृद्धि हुई. लेकिन इस दौरान बाजरा जैसे मोटे अनाजों का उत्पादन कम ही बना रहा.
मेरे बचपन के दिनों में मैं अक्सर अपने दादा-दादी के घर उत्तर प्रदेश जाया करती थी. मैं देखती थी कि मेरी दादी सादी ज्वार-बाजरे की रोटी खी रही है.
वो आटे में धीरे-धीरे पानी डालकर उसे गूथतीं और आटा तैयार कर लेने के बाद वो उसे छोटे-छोटे टुकड़े बना लेतीं. इसके बाद वो उन आटे की लोइयों को दोनों हाथों की हथेलियों के बीच में रखकर धीरे-धीरे थापतीं. चकला-बेलन के बिना वो दोनों हाथों की हथेलियों के बीच थाप-थाप कर गोल रोटियां तैयार कर लेतीं और फिर उसे मिट्टी के चूल्हे पर, लकड़ी की आंच पर सेंकती.
जब वो मुझे रोटियां परोसती थीं, मैं अपनी नाक चढ़ा लेती थी. मुझे कभी समझ नहीं आता था कि आख़िर वो पतली, अधिक मुलायम और खाने में नरम रोटियों की जगह ज्वार-बाजरे जैसे मोटे अनाज की रोटी को इतनी तवज्जो क्यों देती हैं.
लेकिन कुछ सालों पहले, मैंने भी वही सबकुछ खाना शुरू कर दिया जो मेरी दादी मां खाया करती थीं. मैंने अपने किचन से गेंहू का आटा हटाकर उसकी जगह बाजरे का आटा लाकर रख दिया.
हालांकि अब रोटी खाने में मुझे ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन फिर भी मैं इसे छोड़ नहीं पायी क्योंकि कुछ दिनों तक ये रोटी खाने के बाद मुझे ख़ुद लगा कि यह ज़्यादा सेहतमंद है.