
ज्ञानवापी मस्जिद: क्या अदालत इस मामले को विवाद बनने से रोक सकती थी?
BBC
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे करवाने के वाराणसी की निचली अदालत के आदेश पर समर्थन और विरोध, दोनों तरह की आवाज़ें सुनाई दी हैं.
अब से क़रीब 31 साल पहले 1991 में जब कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव सरकार पूजा स्थल विधेयक (विशेष प्रावधान) लेकर आई, तब देश में राम मंदिर आंदोलन अपने उफ़ान पर था.
उसी साल बने इस क़ानून में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 के वक़्त जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में होगा, उसके बाद वो वैसा ही रहेगा और उसकी प्रकृति या स्वभाव नहीं बदलेगा.
1991 में नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री रहे पी चिदंबरम याद करते हैं, "नरसिम्हा राव ने फ़ैसला किया था कि हम अयोध्या के बारे में कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि ये पुरानी लड़ाई है और सालों से मुकदमे जारी हैं. इसलिए सभी झगड़ों को एक बार ख़त्म करने के लिए प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) क़ानून बनाया जाए. इस तरह क़ानून का ख़ाका तैयार किया गया. कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों में इसे लेकर सहमति थी."
पी चिदंबरम के मुताबिक़, नरसिम्हा राव ने उन्हें क़ानून मंत्रालय के साथ मिलकर इस क़ानून का ड्राफ्ट बनाने को कहा था, जो उन्होंने किया भी.
हालांकि बीजेपी ने इस क़ानून का विरोध किया था. उस वक़्त संसद में खजुराहो से भाजपा सांसद रहीं उमा संसद इस क़ानून के ख़िलाफ़ पार्टी की ओर से प्रमुख वक्ता थीं.