
जोशीमठ ही नहीं, इन पहाड़ी शहरों पर भी है जमीन में समाने का खतरा, बेहद डरावनी है रिपोर्ट
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उत्तराखंड के जोशीमठ को सिंकिंग जोन घोषित कर दिया गया. लगातार इसके जमीन में समाने का खतरा बढ़ रहा है. लोगों को रिलीफ कैंप भेजा जा रहा है ताकि हादसा टाला जा सके. इस बीच ये बात भी आ रही है कि जोशीमठ अकेला नहीं, उत्तराखंड में सैर-सपाटे के लिए कई ऐसे मशहूर शहर हैं जो जमीन में धंसने के खतरे के साथ जी रहे हैं.
जोशीमठ को लेकर साल 1976 में ही मिश्रा रिपोर्ट आई थी, जिसमें साफ कहा गया कि यहां किसी भी तरह का प्रोजेक्ट इस जगह और साथ-साथ प्रोजेक्ट के लिए भी खतरा रहेगा. गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा के बनाए पैनल ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि जोशीमठ सख्त जमीन नहीं, बल्कि मोरेन पर बसा है. ये पत्थर-रेत और मिट्टी का वो ढेर है, जो ग्लेशियर के पिघलने पर बनता है.
इसे इस तरह से समझें कि जैसे नदी अपने साथ मिट्टी-रेत-सीपियों जैसी चीजें बहा लाती है और कई बार छोटे-छोटे द्वीप जैसा स्ट्रक्चर बन जाता है, ग्लेशियर भी एक नदी की ही तरह काम करता है और अपने साथ कई चीजें लाता है. ये ठोस जमीन नहीं होती, बल्कि नीचे खोखला स्ट्रक्चर होता है.
मलबे पर बसे शहर के चारों ओर कई प्रोजेक्ट चलने लगे कल्पना कीजिए, किसी कमजोर इमारत की, हल्का धक्का भी जिसे गिरा दे, ऐसी इमारत पर अलग बुलडोजर चल जाए. ठीक यही जोशीमठ के मामले में हुआ. खासकर यहां नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) प्रोजेक्ट को बड़ा खतरा बताया जा रहा है. असल में एनटीपीसी यहां पर लगभग 12 किलोमीटर लंबी सुरंग बना रहा है जो दो सिरों को जोड़ सके. इसके लिए लगातार ब्लास्ट होने लगे.
लोग मान रहे टनल को दोषी इसी बीच जोशीमठ के लोगों ने प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किया. वे मानते हैं कि इसी टनल की वजह से कमजोर जमीन दरक रही है. इधर एनटीपीसी अपने पक्ष में कह रहा है कि उनका काम शुरू होने से सालों पहले से जोशीमठ के घरों में दरारें पड़ने के वाकये सुनाई पड़ने लगे थे. प्रोजेक्ट के अलावा जोशीमठ आपदा की वजहों में बढ़ती आबादी, कंस्ट्रक्शन और टूरिज्म भी शामिल हैं.
ये शहर भी हैं खतरे में उत्तराखंड पहले से ही आपदाओं के लिए अति-संवेदनशील इलाकों में आता रहा. अब चर्चा ये भी है कि जोशीमठ ही नहीं, बल्कि नैनीताल और उत्तरकाशी भी जमींदोज होने के खतरे में हैं. वैज्ञानिक भाषा में इसे लैंड सब्सिडेंस या भू-धंसाव कहते हैं. 'जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस' की मार्च 2018 की रिपोर्ट में भारत और ताइवान के एक्सपर्ट्स ने मिली-जुली चिंता जताते हुए बताया कि नैनीताल किसी ठोस जमीन नहीं, बल्कि मलबे पर बसा शहर है. ये मलबा लगातार नीचे की ओर धसक रहा है.
जमीन के धंसने को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने खास तकनीक की मदद ली, जिसे सिंथेटिक अपेर्चर रडार कहते हैं. इसमें कई सालों में मिट्टी में क्या बदलाव हुए, ये देखते हुए बताया गया कि ऊपर से मिट्टी कैसे हर साल के साथ तेजी से नीचे सरक रही है. नैनीताल के जमीन में समाने के खतरे के पीछे भी कंस्ट्रक्शन वर्क को जिम्मेदार माना गया.

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