जिस सांप्रदायिकता के बीच नेहरू ख़ुद को अकेला पाते थे, क्या उसे अब सच्चा प्रतिनिधि मिल गया है
The Wire
गांधी के बारे में जाता है कि वे अपने आख़िरी सालों में अकेले पड़ गए थे. वह अकेलापन, अगर था भी तो गांधी को बहुत कम समय झेलना पड़ा. असली अकेलापन नेहरू का था. वे प्रधानमंत्री थे और गांधी की तरह ही समझौताविहीन धर्मनिरपेक्ष. लेकिन उनकी सरकार हो या पार्टी, उनकी इस धर्मनिरपेक्षता के साथ शायद ही कोई उतनी दृढ़ता से खड़ा था.
‘सच्चाई यह है कि कितनी ही डींग हम क्यों न मारें, हमने यह दिखलाया है कि हम खासे पिछड़े दिमाग लोग हैं. संस्कृति के सारे तत्त्वों से रहित, जिस तरह कोई भी देश उन्हें समझता है. सिर्फ वे ही लोग जो संस्कृति की समझ से पूरी तरह खाली हैं, इसके बारे में इतनी ज़्यादा बात करते हैं.’ ‘यूपी मेरे लिए एक अजनबी देस होता जा रहा है. मैं वहां फिट नहीं बैठता. यूपी कांग्रेस कमेटी, जिससे मैं 35 बरसों से जुड़ा रहा हूं, अब कुछ इस तरह काम कर रही है कि मैं हैरान रह जाता हूं. इसकी आवाज़ उस कांग्रेस की आवाज़ नहीं जिसे मैं जानता रहा हूं, बल्कि वह है जिसकी मुखालिफत मैं अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर वक्त तक करता रहा हूं.’ ‘अगर समंदर ही अपना नमक खो दे तो फिर आखिर उसे किससे नमकीन किया जाएगा?’ ‘एक मुसलमान सड़क पर चल रहा है. उस पर थूका जाता है और उसे पाकिस्तान जाने को कहा जाता है या उसके चेहरे पर थप्पड़ मारा जाता है या उसकी दाढ़ी खींची जाती है. मुसलमान औरतों पर सड़कों पर भद्दी फब्तियां कसी जाती हैं और हमेशा ही एक फब्ती कसी जाती है, ‘पाकिस्तान जाओ.’ ‘अभी भारत को फासिज़्म की जिस लहर ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है वह उस नफरत का सीधा नतीजा है जो बरसों तक मुस्लिम लीग ने अपने अनुयायियों को गैर मुसलमानों से करने की शिक्षा दी. लीग ने जर्मनी के नाजियों से फासिज़्म की यह विचारधारा हासिल की. ‘कुछ लोगों को यह सुनकर बहुत अच्छा लग सकता है कि हम हिंदू राष्ट्र स्थापित करेंगे… मैं समझ नहीं सकता कि इसके मायने क्या हैं. इस देश में हिंदू बहुसंख्या में हैं और वे जो चाहेंगे वह होगा. ‘हिंदू राष्ट्र का एक ही अर्थ हो सकता है और वह यह कि आप आधुनिक रास्ता छोड़कर एक संकीर्ण और पुरातनपंथी विचार के तरीके को अपना लें और भारत को टुकड़े-टुकड़े कर दें. जो हिंदू नहीं हैं उनकी हैसियत कम कर दी जाएगी. ‘मैंने ईमानदारी से महसूस किया कि बेहतर हो इस मत का अधिक सच्चा प्रतिनिधि मेरी जगह ले. आज की स्थिति में जो कृत्रिमता और अस्वाभाविकता है, वह शायद इससे खत्म हो सके.’
ये शब्द जवाहरलाल नेहरू के हैं. अपने मित्र, सहकर्मी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्दवल्लभ पंत को लिखे गए पत्र के आख़िरी शब्द. आज़ादी मिलने के ढाई बरस बाद 17 अप्रैल, 1950 को नेहरू कुछ गुस्से, कुछ निराशा और कुछ खीझ में कांग्रेस के एक नेता को लिख रहे हैं. उत्तर प्रदेश उनका घर है. लेकिन उस पर जो संप्रदायवाद की छाया पड़ गई है, उस वजह से अब मैं याद करता हूं, 1938 में यूरोप से लौटने के तुरत बाद मैंने लीग में यूरोपीय तानाशाहों का साफ़ असर महसूस किया था. हिंदुओं में भी फासिस्ट संगठनों के विचार और तौर-तरीके लोकप्रिय हो रहे हैं. हिंदू राज्य की स्थापना की मांग उसी की साफ़ अभिव्यक्ति है.’ लेकिन जैसे ही आप हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं, आप ऐसी ज़बान में बात करते हैं जो एक देश को छोड़कर और कोई नहीं समझ सकता और वह देश पाकिस्तान है क्योंकि वह इस अवधारणा से परिचित है. वह तुरंत ही एक इस्लामी देश की स्थापना को जायज़ ठहराएंगे दुनिया को यह दिखलाकर कि हम भी कुछ वैसी ही चीज़ कर रहे हैं.’ आप सरपरस्त अंदाज में कह सकते हैं कि आप मुसलमानों और ईसाइयों की देखभाल करेंगे… आप क्या सोचते हैं कि क्या कोई नस्ल या व्यक्ति एक समय के बाद इस बात को बर्दाश्त कर सकता है कि उनकी सरपरस्ती की जा रही हो और हम उनके ऊपर बैठे हों?’
कांग्रेस के इस पतन पर वे एक शायराना आह भरते हैं,