जिसने पार्टी हित को राष्ट्रहित से ऊपर रखा, उसके लिए राष्ट्रध्वज दल के झंडे के नीचे ही होना चाहिए
The Wire
राष्ट्रध्वज को जब बहुसंख्यकवादी अपराध को जायज़ ठहराने के उपकरण के रूप में काम में लाया जाने लगेगा, वह अपनी प्रतीकात्मकता खो बैठेगा. फिर एक तिरंगे पर दूसरा दोरंगा पड़ा हो, इससे किसे फ़र्क़ पड़ता है?
छवियों के भीतर छवियां होती हैं. दो दिन से देख रहा हूं कि अनेक लोग उत्तेजित हैं कि राष्ट्रध्वज को भारतीय जनता पार्टी के झंडे से ढंक दिया गया है. इसे राष्ट्रध्वज का अपमान बतलाया जा रहा है. लेकिन जो उत्तेजित हैं क्या वे यह महसूस कर पा रहे हैं कि उनके क्षोभ से प्रायः भारत के लोग प्रभावित नहीं हैं. शायद ही किसी को यह दृश्य इतना असामान्य लग रहा हो कि वे आंदोलित हो उठें. ऐसा क्यों हुआ होगा? इसका एक कारण तो यह है कि जो यह सवाल कर रहे हैं, उनमें से किसी ने नहीं पूछा कि इस छवि में राष्ट्रध्वज का जो इस्तेमाल किया गया, वही उपयुक्त था या नहीं या राष्ट्रीय ध्वज का यह उपयोग ही उसका अपमान है या नहीं. जो भारतीय संविधान के नाम पर ली गई शपथ को भंग करते वक्त ज़रा नहीं झिझका और जिसने बाद में इस वचन-भंग को गर्वपूर्वक अपनी वीरता बतलाया क्या उसके पार्थिव शरीर को राष्ट्रध्वज के स्पर्श की गरिमा का अधिकार है? वह मूल प्रश्न था. लेकिन वही प्रश्न पूछा नहीं जा रहा है. आखिर किसे याद नहीं है कि कल्याण सिंह ने अदालत को दिए गए वचन को तोड़ दिया था कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में लाखों ‘कारसेवकों’ के इकठ्ठा होने के बावजूद बाबरी मस्जिद की सुरक्षा का पूरा इंतजाम वे करेंगे और इसकी गारंटी करेंगे कि उसे कोई नुकसान न पहुंचे.More Related News