
जात-पात पर राहुल गांधी और अनुराग ठाकुर के बीच बहस का नुकसान BJP को ही उठाना पड़ेगा
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जातीय राजनीति चुनाव मैदान होते हुए संसद पहुंच चुकी है. बहस सीधे विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच आमने सामने हो रही है. शुरुआत नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने की, और अनुराग ठाकुर ने मोर्चा संभाल लिया - सवाल है कि नफा-नुकसान के बारे में भी किसी ने सोचा है या बस बहस में कूद पड़े हैं?
जातीय सर्वे राज्यों में पहले भी होते रहे हैं. आंकडे़ भी जारी किये जायें, ऐसा कभी जरूरी नहीं लगा. जातीय जनगणना के मुद्दे मजबूत राजनीतिक आधार मिला बिहार में, जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार चलाते हुए भी तेजस्वी यादव को लेकर पहल की. बिहार में जातीय गणना कराई गई, और विधानसभा में पेश किये जाने के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव भी पास किया गया. लेकिन हाई कोर्ट ने रोक लगा दी, और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर भी लगा दी - अब नीतीश कुमार कह रहे हैं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बिहार के प्रस्ताव को नौंवी अनुसूची में शामिल करने की गुजारिश कर चुके हैं.
संसद में राहुल गांधी के जातीय जनगणना के जिक्र के बाद से जो ताजा बहस शुरू हुई है, वो कोई नया मामला नहीं है. 2023 में संसद के विशेष सत्र में महिला बिल पेश किये जाते वक्त राहुल गांधी ने ओबीसी आरक्षण की मांग उठाई थी - और उसके बाद सोशल मीडिया के जरिये जातीय जनगणना की मांग करने लगे. बाद में कांग्रेस की कार्यकारिणी में इसे लेकर एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था, जिसके बाद विधानसभा चुनाव के दौरान वो सत्ता में आने पर जातीय जनगणना का वादा भी करते रहे. विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी के चुनावी वादे का कोई असर नहीं दिखा, लेकिन लोकसभा चुनाव में विपक्ष को जबरदस्त फायदा हुआ - और अब उसे आगे भी भुनाने की तैयारी चल रही है.
सवाल ये है कि जातीय जनगणना पर चल रही बहस का फायदा किसे मिलने वाला है? केंद्र में सत्ताधारी NDA को या पहले के मुकाबले मजबूत विपक्ष बन कर उभरे INDIA ब्लॉक को?
बिहार में कराये गये कास्ट सर्वे के नतीजे आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को अपनी तरफ से सीधे खारिज करने की कोशिश की थी, और ये भी समझाने की कोशिश की कि जातीय जनगणना के पीछे विपक्षी दलों की मंशा क्या है?
आम बजट 2024 पेश करते वक्त भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अंतरिम बजट का फोकस गरीब, महिलाएं, युवा और किसान रहा है - असल में ये वही चार वर्ग हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने देश की चार प्रमुख जातियों के तौर पर पेश किया था.
लेकिन अब जातीय जनगणना पर जो बहस आगे बढ़ रही है, वो सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक लड़ाई है, जिसमें विपक्ष की तरफ से बीजेपी को शह देने की कोशिश हो रही है - और संसद में अनुराग ठाकुर के रिएक्शन से तो नहीं लगता कि बीजेपी इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है.

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