![जातिगत जनगणना के 150 साल... सत्ता में रहते कांग्रेस-बीजेपी ने बनाई दूरी, विपक्ष में रहते खेला दांव, समझें पूरा गेमप्लान](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202304/rahul-gandhi-pm-modi-sixteen_nine.jpg)
जातिगत जनगणना के 150 साल... सत्ता में रहते कांग्रेस-बीजेपी ने बनाई दूरी, विपक्ष में रहते खेला दांव, समझें पूरा गेमप्लान
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना और आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करने की मांग उठाकर सियासी माहौल गर्म कर दिया है. हालांकि, कांग्रेस जब सत्ता में थी तो इसका विरोध करती रही है. ऐसे ही बीजेपी का भी रुख रहा है. जनगणना के 150 साल के इतिहास में जानें क्या-क्या हुआ.
देश की सियासत में एक बार फिर से जातिगत जनगणना का मुद्दा गर्मा गया है. कांग्रेस 2024 लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सियासी तानाबाना बुनकर मोदी सरकार और बीजेपी को घेर रही है. कांग्रेस आज भले ही इस मुद्दे को लेकर आक्रमक है, लेकिन यूपीए-2 से पहले तक सत्ता में रहते हुए विरोध करती रही है. इसी तरह बीजेपी सत्ता में रहते हुए आज जातीय जनगणना के लिए रजामंद नहीं है, लेकिन विपक्ष में रहते हुए इसके पक्षधर रही है. अब कांग्रेस और बीजेपी के बीच जाति आधरित जनगणना के मुद्दे पर तलवारे खिंच गई है.
जनगणना और जातिगत जनगणना क्या है? देश या किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की गणना और उनके बारे में विधिवत रूप से सूचना प्राप्त करना जनगणना कहलाती है. भारत में हर 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है. भारत में जनगणना की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान साल 1872 हुई थी. आजादी के बाद 1951 से 2011 तक सात बार और भारत में कुल 15 बार जनगणना की जा चुकी है.
जनगणना में अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना की जाती है, लेकिन अन्य दूसरी जातियों की गिनती नहीं होती है. जातिगत जनगणना का अर्थ है भारत की जनसंख्या का जातिवार गणना यानि जनगणना के दौरान जाति आधार पर सभी लोगों की गिनती की जाए. इससे देश में कौन सी जाति के कितने लोग रहते है. इसकी जानकारी का आंकड़ा पता चल सकेगा.
क्या देश में कभी जातीय जनगणना हुई? हां देश में जातिगत जनणना हुई है. आजादी से पहले तक जनगणना जाति आधारित ही होती थी. 1872 से लेकर 19931 तक भारत में जितनी भी जनगणना हुई हैं, उसमें लोगों के साथ सभी जातियों की गणना की जाती रही. साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया जरूर गया था, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के चलते उसे प्रकाशित नहीं किया गया. इसके बाद अगली जनगणना से पहले देश आजाद हो चुका था. इस तरह देश में अंतिम जातिगत जनगणना के आंकड़ 1931 के ही मिलते हैं. देश में क्यों रुकी जाति जनगणना? आजादी के साथ ही देश दो हिस्सो में धार्मिक आधार पर बंट चुका था. ऐसे में सामाजिक तौर देश में किसी का बंटवारा न हो सके. इसके लिए अंग्रेजों की जनगणना नीति में बदलाव कर दिया और 1950 में संविधान लागू होने के बाद पहली बार 1951 में हुई जनगणना में सिर्फ अल्पसंख्यक, एससी-एसटी के लोगों की गिनती की गई. जातियों की गिनती की मांग को कांग्रेस ने उस समय ब्रिटिश सरकार का समाज तोड़ने का षडयंत्र करार देते हुए ठुकरा दिया था.
नेहरू और इंदिरा का स्टैंड जाति जनगणना पर संसद में पहली अनौपचारिक चर्चा 1951 में हुई. इस चर्चा में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल डॉ. भीमराव आंबेडकर, डॉ. अबुल कलाम आजाद ने विरोध किया था. ऐसे में 1951 की जनगणना में जातियों की गिनती नहीं हो सकी. इसके बाद पिछड़े वर्ग के आरक्षण की मांग उठी तो नेहरू ने 1953 में काका कालेलकर आयोग बनाया. कालेलकर आयोग ने 1931 की जनगणना को आधार मानकर पिछड़े वर्ग का हिसाब लगाया. जनगणना पर नेहरू के बाद इंदिरा गांधी ने भी पुराना रुख अपनाया.
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