जले गांव, बुझे चूल्हे और बेसहारा लोग... मणिपुर हिंसा के केंद्र में रहा था चुराचांदपुर, अब तक बंकरों में रहने को मजबूर हैं लोग
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2023 में शुरू हुई हिंसा का केंद्र था चुरा चांदपुर. कुकी बहुल यह पर्वतीय जिला सबसे ज्यादा हिंसा की चपेट में आया था और इस जिले से लगने वाली घाटी के तमाम दूसरे जिले जल उठे थे. बिशुनपुर थोरबंग थुईबंग और कनी जैसे इलाकों में हालात युद्ध जैसे थे.
3 मई 2023 को मणिपुर के दो समुदायों के बीच शुरू हुई हिंसा का असर सिर्फ घाटी में ही सीमित नहीं है. जब हालात बिगड़े तो उसने पूरे राज्य को अपनी चपेट में ले लिया. घर गांव शहर जल रहे थे. कहीं पुलिस स्टेशन लूटे जा रहे थे तो कहीं गोलीबारी हो रही थी. लंबे संघर्ष के बाद मणिपुर के जमीनी हालात पर काफी हद तक काबू पाया गया. घाटी के ज्यादातर इलाकों में अब हालात पहले के मुकाबले बेहतर हो रहे हैं तो पर्वतीय क्षेत्र में भी स्थितियां नियंत्रण में दिखाई दे रही हैं. लेकिन पहाड़ी और घाटी में रहने वाले दो समुदायों के बीच दुश्मनी की खाई और गहरी हो गई है. जिस तरह हिंसा के निशान और 1 साल का जख्म घाटी में दिखाई देता है मणिपुर के पर्वतीय जिलों की तस्वीर उससे अलग नहीं है. 2023 के मई में शुरू हुई थी हिंसा 2023 में शुरू हुई हिंसा का केंद्र था चुरा चांदपुर. कुकी बहुल यह पर्वतीय जिला सबसे ज्यादा हिंसा की चपेट में आया था और इस जिले से लगने वाली घाटी के तमाम दूसरे जिले जल उठे थे. बिशुनपुर थोरबंग थुईबंग और कनी जैसे इलाकों में हालात युद्ध जैसे थे. इंफाल शहर से निकलकर चुरा चांदपुर पहुंचने के लिए इन्हीं इलाकों को पार करके जाना होता है. हिंसा के 1 साल बाद भी घाटी में रहने वाले हिंदू मैतेई अब कुकी बहुल पर्वतीय जिलों में नहीं जा सकते. इस तरह पहाड़ों में रहने वाले कुकी समुदाय के लोग घाटी में नहीं आना चाहते क्योंकि यहां उन्हें जान का खतरा है.
चुराचांदपुर में खेती के लिए लौट रहे हैं किसान विष्णुपुर जिला घाटी को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले से जोड़ता है. इन इलाकों में किसान खेती करने लौट आए हैं, लेकिन सीमावर्ती इलाकों में केंद्रीय सुरक्षा बलों ने एक लंबा बफर जोन तैयार किया है. यह बफर जोन एक समुदाय को दूसरे समुदाय वाले इलाकों से अलग करता है. इस बफर जोन में भारतीय सेना असम राइफल्स बीएसएफ और सीआरपीएफ जैसी केंद्रीय एजेंसियां सक्रिय हैं. बिना उचित पहचान के इस पर से उसे पर आना जाना मुश्किल है. विष्णुपुर जिले के इस इलाके में बीते साल अगस्त महीने में भारी हिंसक घटनाएं हुई थीं. असम राइफल्स को भी इस इलाके में काफी विरोध प्रदर्शन झेलना पड़ा था. इस बफर जोन के इर्द-गिर्द बने गांव घर मकान जला दिए गए थे. आगजनी के निशान आज भी जिंदा हैं.
सड़कों पर सुरक्षा बैरिकेड बफर जोन को पार करके जैसे ही चुरा चांदपुर जिले में प्रवेश होता है चारों तरफ हिंसा के निशान और बढ़ते जाते हैं. जहां से कुकी बहुल आबादी की शुरुआत होती है वहां सड़कों पर सुरक्षा बैरिकेड का मोर्चा खुद कुकी समाज के लोगों ने संभाल लिया है. चुराचंदपुर जाने के लिए उनकी अनुमति जरूरी होती है. हेलिक्स जैसे कई बच्चे अपनी अपनी शिफ्ट में पिछले 1 साल से इस बैरिकेड पॉइंट पर ड्यूटी कर रहे हैं जहां से आगे किसी मैतेई को जाने की इजाजत नहीं है. चुराचंदपुर जिले में यहां से प्रवेश करने के लिए यहां के ग्रामीण कागज पर मोहर लगाकर एक पास दे रहे हैं. हेलिक्स बताते हैं कि गांव के कई सारे बच्चे पढ़ाई-लिखाई छोड़ चुके हैं और यह रेश्यो लगभग 80% है जिनकी शिक्षा पर नौकरियों पर हिंसा के बाद बुरा प्रभाव पड़ा है और आज वह अपनी जमीन बचाने के लिए बकरों में हथियार लेकर गांव की हिफाजत कर रहेहैं.
कहीं उबले रहे पत्ते, कहीं पक रहा भात इस चेक पॉइंट को पार करके चुरा चांदपुर शहर में प्रवेश से पहले सड़क पर रिलीफ कैंप दिखाई देता है. यह कोई सरकारी केंद्र नहीं है, बल्कि एक निर्माणाधीन इमारत में कुछ लोगों ने शरण ले रखी है. लगभग 137 कुकी जिसमें बच्चे महिलाएं बड़े युवा और बुजुर्ग शामिल हैं. यह तमाम कुकी मणिपुर के थोबल जिले के रहने वाले हैं और जब हिंसा में उनके घर जलाए गए तो इन लोगों ने भाग कर जान बचाई और अब चुरा चांदपुर जिले में आकर पनाह ले ली. खाने के लिए दो वक्त का राशन स्थानीय एनजीओ और चर्च की संस्था से मिल जाता है. कहीं सब्जियों के पत्ते उबल रहे हैं, तो कहीं चावल पक रहा है.
तिरपाल से बने कमरे, रिलीफ कैंप में कट रहा जीवन छोटे बच्चे आसपास के स्कूल जाने लगे हैं. निर्माणाधीन इमारत में तिरपाल से बने कमरों में पिछले 1 साल से इन 137 कुकी लोगों का जीवन बीत रहा है. इन लोगों में मुखिया का किरदार निभा रहे थॉमस कहते हैं, "हमारा घर जलाया गया तो हम सबको भागना पड़ा. अब हमारे पास नीचे से सप्लाई नहीं आती. बापटिस्ट चर्च संस्था द्वारा अनाज मिल जाता है. सरकार बोलती है सब ठीक हो जाएगा लेकिन 1 साल से ज्यादा हो गया हम रिलीफ कैंप मेंहैं." थॉमस कहते हैं कि अब फिर से मैतेई परिवारों के साथ रहना मुश्किल होगा अब हम यहीं कहीं रहना चाहते हैं.
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