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जम्मू-कश्मीर में 'दरबार प्रथा' बनी चुनावी मुद्दा, जानें- क्या है 150 साल पुरानी परंपरा जिसकी बहाली का वादा कर रहीं पार्टियां
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जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में अनुच्छेद 370 और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाली के बाद अब दरबार प्रथा की बहाली भी चुनावी मुद्दा बन गई है. उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने सरकार बनने पर दरबार मूव प्रथा को बहाल करने का वादा किया है. ऐसे में जानते हैं कि ये 150 साल पुरानी प्रथा क्या थी? और क्यों ये चुनावी मुद्दा बन गई?
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे. इस चुनाव में सभी पार्टियां कई वादे कर रहीं हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियां अनुच्छेद 370 की बहाली का वादा कर रही हैं. इन्हीं एक वादों में से एक 'दरबार मूव' प्रथा की बहाली का भी है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणापत्र में दरबार मूव को बहाल करने का वादा किया है. वहीं, अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी के घोषणापत्र में भी इस प्रथा को फिर से शुरू करने का जिक्र किया गया है.
जम्मू-कश्मीर में 'दरबार मूव' की प्रथा 150 साल से भी ज्यादा पुरानी है. जुलाई 2021 में इसे खत्म कर दिया गया था. इसी प्रथा के कारण सर्दी और गर्मी में जम्मू-कश्मीर की राजधानी बदल जाती थी.
क्या थी 'दरबार मूव' प्रथा?
जम्मू-कश्मीर में ये सदियों प्रथा थी. इसके तहत, हर छह महीने में जम्मू-कश्मीर की राजधानी बदल जाती थी. सर्दियों में राजधानी जम्मू होती थी, जबकि गर्मियों के मौसम में राजधानी श्रीनगर हुआ करती थी.
राजधानी बदलने पर सभी जरूरी सरकारी दफ्तर और सचिवालय को जम्मू से श्रीनगर और श्रीनगर से जम्मू ले जाया करता था. जब सर्दी आती थी तब अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में राजधानी को श्रीनगर से जम्मू शिफ्ट किया जाता था. गर्मी आने पर अप्रैल के आखिरी हफ्ते में राजधानी को जम्मू से श्रीनगर ले जाया जाता था. यानी, मई से अक्टूबर तक श्रीनगर और नवंबर से अप्रैल तक जम्मू राजधानी हुआ करती थी.
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