
जब मंटो ने 'तमन्ना' की जगह 'आशा' लिखने से इनकार कर दिया
BBC
सआदत हसन मंटो ने कहा था, ''अगर आपको मेरी कहानियाँ असहज लगती हैं तो इसका कारण ये है कि हम असहज समय में जी रहे हैं.'’ मंटो के जन्म की 110वीं सालगिरह पर रेहान फ़ज़ल उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में बता रहे हैं.
मंटो ने एक बार अपने बारे में लिखा था, 'वो इस लिहाज से ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है कि उसने कभी मार्क्स को पढ़ा नहीं है, न ही उसकी नज़र फ़्रायड के किसी काम पर गई है. हीगल का उसने नाम भर सुना है, लेकिन सबसे दिलचस्प चीज़ ये है कि लोग, ख़ास तौर से उसके आलोचक ये एलान करते हुए नहीं थकते कि वो इन सब विचारकों से प्रभावित दिखाई देता है. जहाँ तक मैं जानता हूँ उस पर किसी विचारक का असर नहीं हो सकता.'
मंटो का जीवन अंतर्विरोधों से भरा पड़ा था. ताउम्र ख़ुदा के अस्तित्व पर सवाल उठाने वाले मंटो हर पन्ने की शुरुआत में हमेशा '786' यानी 'बिस्मिल्लाह' लिखा करते थे. वो इसे ख़ुदा का फ़ोन नंबर कहते थे.
पैदाइश से कश्मीरी सआदत हसन मंटो का शुरुआती जीवन अमृतसर में बीता था. उन पर छह अलग-अलग मौक़ों पर अश्लीलता का मुक़दमा चलाया गया, लेकिन उन पर उसका कोई असर नहीं पड़ा.
वो कहा करते थे, 'अगर आपको मेरी कहानियाँ असहज लगती हैं तो इसका कारण ये है कि हम असहज समय में जी रहे हैं.'