जब प्रकाश सिंह बादल को घर में झेलनी पड़ी थी बगावत, क्यों अलग हो गई थी भतीजे मनप्रीत की राह?
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शिरोमणि अकाली दल के मुखिया और संरक्षक प्रकाश सिंह बादल नहीं रहे. उन्होंने 95 वर्ष की आयु में मंगलवार को मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में आखिरी सांस ली. राजनीति में उन्होंने सरपंच से लेकर सीएम पद तक का सफर तय किया और पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. पंजाब की सियासत में उनके कई किस्से मशहूर हैं.
प्रकाश सिंह बादल नहीं रहे. पंजाब की सियासत के भीष्म पितामह, आखिरी वक्त तक शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक और 94 वर्ष की उम्र तक सियासत में बुलंदी का झंडा गाड़ कर रखने वाले बादल के जाने से देश के इस उत्तर भारतीय राज्य में एक सूनापन सा आ गया है. 1947 में जब वह सरपंच बनकर आए थे तो किसने सोचा था कि यह सफर सीएम पद तक के पड़ाव तक पहुंचेगा और वह भी एक या दो नहीं, बल्कि पांच बार. पंजाब की राजनीति में उन्हें बाबा बोहड़ के नाम से जाना जाता रहा है.
जब रिश्तों में मिली राजनीतिक टकराहट राजनीति में राजनेताओं के किस्से हमेशा अमर रहा करते हैं. जीतने चर्चे उनकी सफलताओं के होते हैं, हार की कहानियां भी उतने ही चटखारों के साथ सुनी-सुनाई जाती हैं. शिअद संरक्षक रहे बादल के लिए बीते साल 2022 के चुनाव को छोड़ दें तो बतौर विधायकी उनके दामन हार तो नहीं आई थी, लेकिन सत्ता की उठा-पटक के बीचे रिश्तों के झंझावातों से वह भी अछूते नहीं रहे थे. रिश्तों में राजनीतिक टकराहट उन्हें अपने ही भतीजे मनप्रीत सिंह बादल से मिली थी, जब मनप्रीत एक मनमुटाव के बाद उनसे अलग हो गए थे और फिर अपनी अलग पार्टी उन्होंने बना ली थी.
कभी दोस्त थे सीएम भगवंत मान और मनप्रीत सिंह बादल ये कहानी शुरू करने से पहले एक और बात बता देते हैं. आज पंजाब के सीएम भगवंत मान हैं, वह कभी मनप्रीत सिंह बादल के बहुत करीबी दोस्त भी हुआ करते थे. राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि भगवंत मान को राजनीति में लाने वाले मनप्रीत बादल ही हैं. उन्होंने भगवंत मान को अपनी पार्टी पीपीपी से टिकट दिया था और पहली बार उन्हें चुनाव भी मनप्रीत ने ही लड़वाया था. हालांकि आज भगवंत मान आम आदमी पार्टी में हैं और मनप्रीत ने बीते दिनों भारत जोड़ो यात्रा से पहले ही कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. मनप्रीत भाजपा में शामिल हो चुके हैं.
इसलिए अलग हुई थीं चाचा-भतीजे की राह मनप्रीत सिंह बादल की चाचा प्रकाश सिंह बादल टकराहट की वजह थी सीएम पद की दावेदारी. मनप्रीत के पिता गुरदास सिंह बादल और शिअद प्रमुख और पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल सगे भाई थे. 1995 में पहली बार अकाली दल के टिकट पर मनप्रीत को विधायक चुना गया था. इसके बाद वह अकाली दल के ही टिकट पर 1997, 2002 और 2007 में भी गिद्दड़बाहा सीट से ही विधायक बनते रहे थे. उस समय की पंजाब की राजनीति में प्रकाश सिंह बादल के बाद युवाओं के बीच मनप्रीत काफी लोकप्रिय थे और 2007 की बादल सरकार में वित्तमंत्री भी रहे. तब वह सरकार में सीएम के बाद नंबर-2 की हैसियत रखते थे.
खुद को सीएम पद का दावेदार मान रहे थे मनप्रीत यही वजह थी कि प्रकाश सिंह बादल के बाद वह खुद को पंजाब के लिए सीएम पद का अगला दावेदार मान रहे थे. इसी बीच उन्हें, अकाली दल की कमान सुखबीर सिंह बादल के हाथ में जाने की भनक लगी और उन दोनों के बीच मनमुटाव होने लगे. वहीं प्रकाश सिंह बादल भी बेटे का करियर बनाने की कोशिश में जुटे थे.
सुखबीर सिंह बादल से बढ़ा था विवाद इधर, अपने लिए शिअद में सही जगह न महसूस करने वाले मनप्रीत का डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल से विवाद बढ़ने लगा. उन्होंने इसी कारण अकाली दल छोड़ दिया. साल 2010 में आपसी मतभेद के बाद मनप्रीत का रास्ता अकाली सरकार से बिल्कुल अलग हो गया. उन्होंने 2012 में लेफ्ट के साथ मिलकर पंजाब में अपनी नई पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब बना ली और अपनी पार्टी के सिंबल पर ही 2012 का विधानसभा चुनाव भी उन्होंने लड़ा. इसके बाद मनप्रीत 2014 में कांग्रेस के सिंबल पर बठिंडा से चुनाव लड़े थे. इस चुनाव की हर तरफ खूब चर्चा हुई थी, क्योंकि यह चुनाव वह अपनी भाभी और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर के खिलाफ लड़ रहे थे. हालांकि वह इस चुनाव में हार गए.
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
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