
जब काबुल के दौरे पर गए एक पाकिस्तानी फ़ोटोग्राफ़र का अफ़ग़ान परिवार ने 'नमस्ते' कहकर किया स्वागत
BBC
90 के दशक में काबुल के दौरे पर गए एक पाकिस्तानी फ़ोटोग्राफ़र ने देखा कि यह शहर बिलकुल अलग और आधुनिक भी है और यहां के लोगों को भारत पसंद है.
वैसे तो मैं पाकिस्तान की एक शांति समिति के साथ काबुल गया था लेकिन मैंने उस मौक़े का इस्तेमाल वहां के लोगों के साथ मेलजोल बढ़ाने के लिए किया. उसके बाद मुझे ये अहसास हुआ कि जंग की मार झेल चुके काबुल शहर के अंदर एक और ही काबुल बसा है.
एक पेंटर के घर मेरा स्वागत 'नमस्ते' कह कर किया गया.
घर की लड़कियों को हिंदी फ़िल्मों का बेहद शौक था. उसी से वो टूटी-फूटी हिंदी और उर्दू बोलना सीख गई थीं. जब उनसे बताया गया कि मैं मुसलमान हूं और वो मुझे सलाम कर सकती हैं तो उनमें से एक कहने लगीं, "हमने सोचा कि शायद पाकिस्तान में भी सलाम को नमस्ते कहते हैं."
ज़ाहिद अली ख़ान डरे हुए लेकिन जीवन से भरपूर उस परिवार को याद करते हुए कहते हैं, "मुलाक़ात के बाद, ये महसूस हुआ कि वो एक आधुनिक परिवार था. जब मैंने उनकी तस्वीरें लीं तो वे सभी बहुत ख़ुश हुए. फिर मेरी उन सबसे दोस्ती हो गई और बच्चे तो मेरे अच्छे दोस्त बन गए. वो मेरे आस-पास ही हंस-खेल रहे थे."
एक पाकिस्तानी पत्रकार और फ़ोटोग्राफ़र के आने की ख़बर पूरे मोहल्ले में फैल गई, जिसके बाद 'हर दिन एक नया परिवार मुझसे मिलने आता.'