जनरल सीट पर ST, ओबीसी चेहरों पर दांव और सवर्णों पर फोकस... राजस्थान जीतने के लिए बीजेपी के X Factor!
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राजस्थान चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा आगे किए बिना उतरी बीजेपी की अलग ही सोशल इंजीनियरिंग देखने को मिल रही है. कुछ सामान्य सीटों पर भी पार्टी ने एसटी उम्मीदवार उतार दिए हैं तो वहीं सबसे अधिक जाट चेहरों को टिकट दिया है. क्या है इसके पीछे की रणनीति?
राजस्थान की जनता 25 नवंबर को मतदान कर अगले पांच साल के लिए अपनी सरकार चुनेगी. मतदान से पहले मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. बड़े-बड़े नेताओं की रैलियां हो रही हैं तो साथ ही लोकलुभावन वादों की भी बहार है. इन सबके बीच जाति और वर्ग के आधार पर वोटों का गणित साधने के लिए भी नई-नई सोशल इंजीनियरिंग भी देखने को मिल रही है.
सूबे में पिछले 30 साल से हर पांच साल बाद सरकार बदलने का ट्रेंड रहा है. ट्रेंड के हिसाब से जयपुर के ताज की प्रमुख दावेदार मानी जा रही विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी नए-नए प्रयोग कर रही है. ट्रेंड तोड़ने के लिए पूरा जोर लगा रही सत्ताधारी कांग्रेस की सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं के साथ जातिगत जनगणना के कार्ड से मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. जातीय व्यूह में फंसी इस चुनावी लड़ाई में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है.
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कांग्रेस के इस जातीय व्यूह की काट के लिए बीजेपी ने नया फॉर्मूला अपनाया है. बीजेपी ने वसुंधरा राजे या किसी भी नेता का चेहरा आगे करने से परहेज करते हुए अपने ट्रंप कार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम को आगे कर दिया है. बीजेपी ने एक तरफ जहां 'मोदी साथे राजस्थान' का नारा दे दिया है, वहीं दूसरी तरफ टिकट बंटवारे में भी ओबीसी और एमबीसी चेहरों पर अधिक दांव लगाया है. बीजेपी के 200 में से 70 उम्मीदवार इन्हीं वर्गों से हैं.
ओबीसी में जाट नेताओं को अधिक टिकट
राजस्थान के चुनाव में जाट समाज पर बीजेपी और कांग्रेस, दोनों का ही फोकस नजर आता है. बीजेपी ने ओबीसी समाज से आने वाले 60 नेताओं पर दांव लगाया है जिनमें से 31 जाट समाज से हैं. पार्टी ने गैर जाट ओबीसी को शेष 29 सीटों में ही एडजस्ट किया है. कांग्रेस ने 36 जाट नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है.
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