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छत्तीसगढ़: बस्तर में कथित नक्सलियों के ‘आत्मसमर्पण’ के बाद क्या होता है?
The Wire
दंतेवाड़ा में 'लोन वर्राटू' के तहत पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाले कथित पूर्व नक्सलियों के लिए बनाया गए डिटेंशन कैंप ‘शांति कुंज’ का अस्तित्व क़ानूनी दायरों से परे है.
(यह लेख ‘बार्ड– द प्रिज़न्स प्रोजेक्ट’ श्रृंखला का हिस्सा है जो पुलित्जर सेंटर ऑन क्राइसिस रिपोर्टिंग के साथ साझेदारी के तहत लिखा गया है.)
दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़): एक पुलिस थाने के अंदर रोशनी से जगमगाते हुए एक कॉन्फ्रेंस रूम में नवविवाहित जोड़ों का एक समूह अलग-अलग जोड़ों में बैठा था. सभी की उम्र मुश्किल से 20 से 30 वर्ष के बीच रही होगी. इन्हें बैठाए जाने का तरीका पूर्व-निर्धारित था. पहले एक पुरुष बैठा, उसके दाहिनी ओर एक युवती बैठी थी. कुछ इंच की जानबूझकर छोड़ी गई दूरी के बाद अगला जोड़ा बैठा था.
कमरे में कम से कम 15 नवविवाहित जोड़े थे, सभी मास्क लगाए हुए थे और घात लगाए बैठे कैमरों को चकमा देने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे. प्रत्येक जोड़े के पीछे बड़े ही व्यवस्थित ढंग से शादी का सामान रखा हुआ था. दूल्हे के लिए एक सेहरा और फीका सुनहरा कुर्ता व पैंट, दुल्हन के लिए एक चमकदार साड़ी, चूड़ियां और कुछ आकर्षक आभूषण. कुछ जरूरी बर्तन, कंबल, तकिए और एक नया स्मार्टफोन भी पास में रखे थे.
यह कमरा अक्सर आयोजित किए जाने वाले राज्य-संचालित किसी भी अन्य सामूहिक विवाह कार्यक्रम जैसा लग रहा था. लेकिन एक बेहद महत्वपूर्ण अंतर था. दंतेवाड़ा पुलिस के अनुसार, ये सभी युवा जोड़े कुछ वक्त पहले तक ‘सशस्त्र विद्रोही’ थे. उनकी शादी में साथ देने के लिए कोई परिवार का सदस्य नहीं था, कोई दोस्त और रिश्तेदार उन्हें बधाई देने या उनके उत्साहवर्धन के लिए नहीं थे. इन जोड़ों की शादी पिछले साल जून में जिला पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी ‘लोन वर्राटू’ योजना के एक हिस्से के रूप में करा दी गई थी.