
छत्तीसगढ़: क्या नक्सलवाद से जुड़ी सरकारी योजनाएं एक छलावा बनकर रह गई हैं
The Wire
विशेष रिपोर्ट: साल 2004 में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने 'नक्सल पीड़ित पुनर्वास योजना’ शुरू करते हुए नक्सल पीड़ित व्यक्तियों/परिवारों व आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने और पुनर्वास की बात कही थी. योजना के पात्र व्यक्तियों का कहना है कि इसकी ज़मीनी हक़ीक़त कागज़ों पर हुए वादों से बिल्कुल अलग है.
गौतरिया राम विश्वकर्मा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के शीलपट गांव में स्वास्थ्य विभाग के अधीन बतौर मलेरियाकर्मी तैनात थे. बिंदु क्रमांक 5 में लिखा है, ‘आत्मसमर्पित नक्सली के पुनर्वास में इस बात का परीक्षण किया जाएगा कि उसके द्वारा नक्सलियों के विरुद्ध कार्रवाई में राज्य को कितना योगदान दिया गया है.’ 22 सितंबर 2009 की रात दो बंदूकधारी नक्सली उनके घर आए और अपने बीमार साथी का इलाज कराने के बहाने उन्हें जंगल में अपने साथियों के पास ले गए. बिंदु क्रमांक 16 में वर्णित है, ‘यदि आम जनता में से किसी व्यक्ति द्वारा नक्सल विरोधी अभियान में पुलिस को विशेष सहयोग दिया हो या आम जनता की रक्षा व शासकीय/अशासकीय संपत्ति की सुरक्षा के दौरान नक्सलियों से मुकाबला किया हो जिसके चलते उसकी जान को खतरा पैदा हो गया हो, तो उसे पुलिस विभाग के अधीन निम्नतम पदों या होमगार्ड पर योग्यतानुसार नियुक्ति दी जाएगी.’ आगे गौतरिया के साथ जो हुआ, उसकी उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी. उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर जंगल में घंटे-दो घंटे घुमाने के बाद नक्सलियों ने एक के बाद एक तीन गोलियां उनके शरीर में उतार दीं. वहीं, बिंदु क्रमांक 27 में लिखा है, ‘आत्मसमर्पित नक्सली या नक्सल पीड़ित व्यक्ति के खिलाफ यदि पूर्व में आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध हो तो उनके द्वारा नक्सल उन्मूलन में दिए गये योगदान को ध्यान में रखते हुए आपराधिक प्रकरणों को समाप्त करने पर शासन विचार करेगा.’ गौतरिया को मरा समझकर नक्सली उन्हें जंगल में ही छोड़कर भाग गए, लेकिन किस्मत से गौतरिया की सांसें चल रही थीं. उस हमले में गौतरिया जिंदा तो बच गए लेकिन नक्सलियों के डर से वे अपना घर, जमीन, खेती-बाड़ी सब छोड़कर अपने गांव से दूर भानुप्रतापपुर में आ बसे.More Related News