चुनाव के बाद से साइलेंट चल रहीं वसुंधरा अचानक मुखर क्यों हो गईं, क्यों दिखा रहीं तेवर?
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चुनाव के बाद से ही साइलेंट चल रहीं वसुंधरा राजे अचानक मुखर हो गई हैं. वसुंधरा राजे ने सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर के अभिनंदन समारोह में कहा कि लोगों को पीतल की लौंग क्या मिल जाती है, वे खुद को सर्राफ समझ बैठते हैं. वसुंधरा अचानक मुखर क्यों हो गईं? वह क्यों तेवर दिखा रही हैं?
वसुंधरा राजे राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर से मुख्यमंत्री पद का मजबूत दावेदार थीं. पार्टी ने पहले बगैर सीएम फेस के चुनाव लड़ने का ऐलान किया और फिर जीत के बाद भजनलाल शर्मा को सरकार की कमान सौंप दी. करीब 10 महीने पहले मुख्यमंत्री पद के लिए भजनलाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव भी विधायक दल की बैठक में वसुंधरा राजे से ही रखवाया गया. तब से ही वसुंधरा के सियासी करियर को लेकर कयासों का दौर चलता आया है लेकिन पूर्व सीएम चुनाव के बाद से ही साइलेंट रहीं. वसुंधरा अब अचानक मुखर हो गई हैं.
उन्होंने सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर के सम्मान में आयोजित अभिनंदन समारोह के दौरान कहा, "ओम माथुर चाहे कितनी ही बुलंदियों पर पहुंच गए लेकिन इनके पैर हमेशा जमीन पर ही रहते हैं. इसीलिए इनके चाहने वाले भी असंख्य हैं. वरना कई लोगों को पीतल की लौंग क्या मिल जाती है, वे खुद को सर्राफ समझ बैठते हैं." वसुंधरा राजे की इस टिप्पणी ने नई चर्चा को जन्म दे दिया है. वसुंधरा की इस टिप्पणी को कोई सीएम भजन से जोड़कर देख रहा है तो कोई विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके मदन राठौड़ से.
यह टिप्पणी किसके लिए थी, यह तो वसुंधरा ही जानें लेकिन बात इसे लेकर भी हो रही है कि चुनाव के बाद से साइलेंट चल रहीं वसुंधरा राजे अचानक मुखर क्यों हो गईं, क्यों तेवर दिखा रही हैं? राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी का पावर सेंटर हुआ करती थीं लेकिन पिछले करीब एक साल में ही परिस्थितियों ने ऐसी करवट ली कि वह हाशिए पर चली गई हैं. सत्ता परिवर्तन का असर कहें या क्या, जो नेता-विधायक पहले वसुंधरा की परिक्रमा करते नजर आते थे, अब दूरी बना रहे हैं. उनकी यह टिप्पणी नेताओं के व्यवहार में खुद को लेकर आए बदलाव को लेकर निराशा बता रही है. सरकार में नहीं तो संगठन में ही सही या फिर कोई और जिम्मेदारी, महारानी अब तेवर दिखा रही हैं तो उसके पीछे अपना खोया सियासी वैभव पाने की कोशिश ही है.
उम्र का फैक्टर- एक पहलू यह भी है कि वसुंधरा राजे 71 साल की हो चुकी हैं. बीजेपी की अघोषित नीति 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को टिकट देने से परहेज कर मार्गदर्शक मंडल में डाल देने की रही है. राजस्थान के अगले चुनाव तक वसुंधरा बीजेपी में एक्टिव पॉलिटिक्स से रिटायरमेंट की इस आयु सीमा तक पहुंच चुकी होंगी. वसुंधरा राजे के सामने अब आगे भी एक्टिव पॉलिटिक्स में प्रासंगिक बनाए रखने की चुनौती है.
बेटे को सेट करना- वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत भी सियासत में हैं. दुष्यंत झालावाड़-बारां सीट से चौथी बार के सांसद हैं. बीजेपी ने जब सीएम के लिए भजनलाल शर्मा का नाम आगे किया और इसका प्रस्ताव खुद वसुंधरा से ही रखवाया गया, ऐसा कहा जाने लगा कि पार्टी ने उन्हें दुष्यंत को लेकर जरूर कोई बड़ा आश्वासन दिया होगा. वसुंधरा की राजनीति का मिजाज भी ऐसा नहीं रहा है जिससे यह मान लिया जाता कि वह समर्पित सिपाही की तरह आलाकमान का हर फैसला ऐसे ही मान लेंगी. लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में लगातार तीसरी बार मोदी सरकार बन गई लेकिन दुष्यंत खाली हाथ ही रहे. चौथी बार के विधायक दुष्यंत मोदी मंत्रिमंडल में जगह पाने से भी वंचित ही रहे.
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