
चारधाम राजमार्ग के चौड़ीकरण से तिब्बत की ओर से चीन का ख़तरा कम नहीं होगा
The Wire
उत्तराखंड के जोखिमग्रस्त पारिस्थितिक क्षेत्रों में सड़कों, ख़ासकर राजमार्ग का निर्माण अनिवार्य तौर पर इस तरह से होना चाहिए कि ये भारत के लिए अपने ही पांव में कुल्हाड़ी मारने वाले न साबित हों.
केंद्र सरकार ने यह दलील दी है कि तिब्बत में चीन के भारी सैन्य जमावड़े के मद्देनजर 1962 जैसी त्रासदी को टालने के लिए सेना को उत्तराखंड में ज्यादा चौड़ी सड़कों की जरूरत है. कम शब्दों में कहा जाए तो सरकार की यह दलील कपट से भरी हुई है.
इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दी गई यह दलील वास्तव में भारत की सीमाओं की रक्षा के बारे में नहीं है, बल्कि उत्तराखंड में स्थित चार पवित्र धामों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तक की वर्तमान सड़कों के चौड़ीकरण का इस्तेमाल अपने फायदे में करने की उसकी क्षमता को लेकर है.
दूसरे शब्दों में, सरकार ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के पवित्र मंत्र का इस्तेमाल सर्वोच्च न्यायालय के सितंबर, 2020 के आदेश को धता बताने के लिए कर रही है, जिसमें सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर तक सीमित की गई थी.
जहां तक तिब्बत में चीनी बुनियादी ढांचे का सवाल है, तो इसका अस्तित्व 40 सालों से ज्यादा से है. हिमालय के दूसरी तरफ तिब्बत के पठार का भू-भाग ज्यादातर समतल होने के कारण वहां चीन ने सड़कों के एक प्रभावशाली नेटवर्क का निर्माण किया है. लेकिन जहां तक सैन्य तैनाती का सवाल है, तो भारत की स्थिति संतोषजनक है और संभवतः चीन की तुलना में इसकी सैन्य उपस्थिति ज्यादा आगे के इलाकों तक है, और इसकी वजह भारत के तरफ की स्थलाकृति में छिपी हुई है.