
चारधाम परियोजना: आपदाओं के बावजूद पर्यावरण से खिलवाड़ पर क्यों आमादा है केंद्र
The Wire
2019 में केंद्र ने बिना पर्यावरण स्वीकृति के अपने दिए मानकों के उलट चारधाम परियोजना शुरू करवाई. जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने इससे हिमालयी पर्यावरण को क्षति पहुंचने की बात कही, तब रक्षा मंत्रालय ने बीच में आकर सड़कों को सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बताते हुए इनके चौड़ीकरण की मांग की है.
विकास के नाम पर केंद्र सरकार हिमालय के संवेदनशील और पावन पर्यावरण से लगातार खिलवाड़ करती आ रही है. पहले जून 2013 की केदारनाथ आपदा और अब इस साल फरवरी के महीने में ऋषि गंगा में आई जल प्रलय से भी केंद्र सरकार कोई सीख लेने को तैयार नहीं. मैंने सर्वप्रथम वर्ष 2011 और 2012 में लगातार दो बार इस मुद्दे पर लोकसभा में नियम 193 के तहत व्यापक चर्चा करवाई. एक सुर में गंगा और हिमालय के व्यापारिक दोहन के खिलाफ सदस्यों ने आवाज उठाई. सभी दलों के सांसद मेरे साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले, अधिक तो नहीं पर थोड़ी बहुत हलचल सरकार में हुई किन्तु कुछ ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई. जून 2013 की केदारनाथ आपदा ने हमारे उठाए संशयों को सही साबित कर दिया. तब लोकसभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने पुनः जोर-शोर से विकास के नाम पर हिमालय और गंगा के व्यावसायिक दोहन के खिलाफ चेताया और पुनः गंगा पर सब बांधों को रद्द करने की मांग उठाई. लेकिन वर्तमान सरकार ने आते ही जहां बांधों के निर्माण की गति और बढ़ा दी, वहीं गंगा की संवेदनशील घाटियों में 900 किलोमीटर की विशालकाय चारधाम परियोजना और लाद दी. मकसद था चारधाम हाइवे को अत्यधिक चौड़ा (10 मीटर काली सतह) कर हिमालय को टूरिस्म हॉटस्पॉट बनाना और इस तरह इन चारधाम मार्गों पर टोल-टैक्स की भी उगाही करना. सारे नियम कानूनों से खिलवाड़ कर बिना पर्यावरण स्वीकृति के ही परियोजना 2019 के चुनाव से पहले पूरी करने की हड़बड़ी में शुरू करवा दी.More Related News