घर की लड़ाई, खालिस्तानियों से हमदर्दी और अमेरिका की दुश्मनी... कहानी 2 Trudeaus की, जिनका अंजाम एक जैसा
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शुरू से शुरुआत करें तो राजनीति जस्टिन ट्रूडो की नियति थी क्योंकि उनका जन्म पीएम हाउस में हुआ था. 1971 में जब दुनिया क्रिसमस का जश्न मना रही थी. प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के घर 24 ससेक्स ड्राइव (कनाडा पीएम का आधिकारिक आवास) पर जस्टिन का जन्म हुआ. जस्टिन को गुड लुक्स, सुडौल शरीर और आकर्षक कद-काठी अपने पिता से ही विरासत में मिली है.
मैं दबाव नहीं लेता... मैंने दबाव लेना सीखा ही नहीं... 18 साल के जस्टिन ट्रूडो ने कॉलेज कैंपस में जब ये शब्द कहे थे तब वह आत्मविश्वास से सराबोर थे. कॉन्फिडेंट और प्रिविलेज ट्रूडो को उस समय जरा भी इल्म नहीं होगा कि भविष्य में उन्हें इस दबाव की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. आकर्षक और करिश्माई व्यक्तित्व के साथ-साथ सिक्स पैक एब्स और फेमिनिस्ट छवि वाले ट्रूडो 2015 में जिस लोकप्रियता के साथ प्रधानमंत्री बने थे, उन्होंने उतनी ही ज्यादा आलोचना के बीच पद भी छोड़ा.
यह जानना हैरानी भरा है कि जस्टिन का राजनीतिक हश्र ठीक वैसा ही हुआ, जैसा उनके पिता पियरे ट्रूडो का था. ये संयोग ही है कि पिता और बेटे का राजनीतिक ग्राफ समानांतर तरीके से हिचकोले भी खाता रहा, जिन्हें दुनियाभर में प्रसिद्धी मिली लेकिन जमकर फजीहत भी हुई.
शुरू से शुरुआत करें तो राजनीति जस्टिन ट्रूडो की नियति थी क्योंकि उनका जन्म पीएम हाउस में हुआ था. 1971 में जब दुनिया क्रिसमस का जश्न मना रही थी. प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के घर 24 ससेक्स ड्राइव (कनाडा पीएम का आधिकारिक आवास) पर जस्टिन का जन्म हुआ. जस्टिन को गुड लुक्स, सुडौल शरीर और आकर्षक कद-काठी अपने पिता से ही विरासत में मिली है.
एक ऐसे मुल्क में जहां राजनीतिक वंशवाद बेमुश्किल ही देखने को मिलता है. जस्टिन ट्रूडो पहले ऐसे कनाडाई थे, जो अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए इस पद पर पहुंचे. पिता और बेटे का जीवन तमाम तरह की समानताओं से पटा पड़ा है. समानता इतनी थी कि दोनों ने जिस तरह की प्रसिद्धि अपने राजनीतिक जीवन में देखी, उनका पतन भी लगभग एक ही ढंग से हुआ.
जस्टिन के पिता पियरे ट्रूडो का नाम कनाडा के कद्दावर प्रधानमंत्रियों में शुमार है. उनकी गिनती देश के बुद्धिजीवियों, भाषाओं को लेकर उनके प्यार और सिविल राइट्स पैरोकार के तौर पर होती है. वह जुनूनी थे और उनमें लीक से हटकर काम करने की ललक थी. लेकिन उनका एक स्याह पक्ष भी था जो आगे चलकर उन पर भारी पड़ा. वह पहली बार 1965 में सांसद चुने गए और फिर तीन साल के भीतर ही प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गए. 1968 से 1979 तक और फिर 1980 से 1984 तक 15 साल तक कनाडा की बागडोर उनके हाथों में थी. और जब सत्ता उनके पास नहीं थी तो वह संसद में विपक्ष के नेता के तौर पर बैठकर सरकार की बखिया उधेड़ते थे.
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