गोली चलाते तीन शूटर्स और मूकदर्शक बनी पुलिस... अतीक-अशरफ मर्डर में 45 घंटे बाद भी अनसुलझे हैं ये 6 सवाल
AajTak
अतीक और अशरफ की हत्या के बाद पकड़े गए कातिलों ने शुरुआती पूछताछ में इतना तो कहा है कि अतीक अहमद की हत्या कर वो बड़ा माफिया बनना चाहते थे. जुर्म की दुनिया में नाम कमाना चाहते थे. लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी भर है? या फिर इसके पीछे कोई बड़ी साजिश है?
15 अप्रैल की रात प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल के पास जो कुछ हुआ, उसे मीडिया के कैमरों के जरिए पूरी दुनिया ने देखा. लेकिन जो कुछ कैमरे पर दिखाई दिया, कहानी उसके आगे भी है और उस कहानी का सामने आना अभी बाकी है. अतीक और अशरफ की हत्या के बाद पकड़े गए कातिलों ने शुरुआती पूछताछ में इतना तो कहा है कि अतीक अहमद की हत्या कर वो बड़ा माफिया बनना चाहते थे. जुर्म की दुनिया में नाम कमाना चाहते थे. लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी भर है? या फिर इसके पीछे कोई बड़ी साजिश है?
गहरी साजिश की तरफ इशारा ये सवाल इसलिए क्योंकि जिस तरह से इस वारदात को अंजाम दिया गया, जिस तरह से हमलावर अलग-अलग इलाकों से होने के बावजूद एक साथ प्रयागराज के होटल में पहुंचे, जिस तरह के हथियारों से उन्होंने शूटआउट को कैरी किया, हमले के वक्त कातिलों ने जिस तरह की नारेबाजी की और फिर हमले के फौरन बाद जिस तरह से हथियार फेंक कर सरेंडर कर दिया, वो सब इस वारदात के पीछे किसी गहरी साजिश के होने की तरफ इशारा करता है. इससे पहले इस कहानी को आगे बढ़ाएं, इस सिलसिले में दर्ज पुलिस की एफआईआर पर एक नजर डाल लेते हैं.
शाहगंज थाने में दर्ज हुई एफआईआर प्रयागराज के शाहगंज पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई है. जिसमें इस वारदात का शुरुआती ब्यौरा दर्ज है और ये ब्यौरा कहता है कि इस वारदात को उत्तर प्रदेश के ही तीन अलग-अलग जिलों के रहनेवाले लड़कों ने अंजाम दिया, जिनका इरादा शोहरत कमाना था और उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि मौके पर इतने सारे पुलिसवाले मौजूद होंगे, जिसके चलते वो वारदात को अंजाम देने के बाद पूरी तरह से घिर जाएंगे, लेकिन हालात बताते हैं कि वारदात की साजिश तहरीर में लिखी इन चंद लाइनों से कहीं बहुत आगे की है.
तफ़्तीश का पहलू नंबर-1- आख़िर कैसे इकट्ठा हुए तीनों हमलावर? पुलिस की तफ्तीश के मुताबिक हमलावर लवलेश तिवारी यूपी के बांदा जिले का रहनेवाला है. जबकि मोहित उर्फ सनी हमीरपुर से है और तीसरा हमलावर अरुण मौर्य कासगंज से है. जिनकी उम्र बमुश्किल 18 से 20 साल के आस-पास की है. लेकिन जिस तरह से तीनों एकजुट हो कर इस वारदात को अंजाम देने की साजिश रचते हैं, वो सवाल खड़े करता है. सवाल यही है कि आखिर ये तीनों एक-दूसरे कब और कैसे मिले और कैसे इन्होंने इस साजिश को अंजाम देने की प्लानिंग की? और जैसा कि उन्होंने कहा कि वो इस वारदात को अंजाम देकर बड़ा माफिया बनना चाहते थे, तो आखिर उन्होंने नाम कमाने के लिए अतीक अहमद को ही क्यों चुना?
तफ़्तीश का पहलू नंबर-2- हमले के लिए विदेशी हथियार कहां से मिले? हमले के वक्त तीनों लड़कों ने जिस तरह से अत्याधुनिक हथियारों से ताबड़तोड़ गोली चलाई, वो उनके पीछे किसी बड़े मास्टरमाइंड के होने का इशारा मिलता है. वारदात के बाद हमलावरों के पास से तुर्की में बने जिगाना पिस्टल के बरामद होने की बात सामने आई, जिसकी कीमत करीब 6 से 7 लाख रुपये बताई जाती है. ऊपर से भारत में इस हथियार का इस्तेमाल करने पर पाबंदी है. यानी ये पिस्टल बैन है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नए उम्र के इन लड़कों के पास ऐसे खतरनाक और महंगे हथियार कहां से और कैसे आए? अभी इस सवाल का जवाब भी सामने आना बाकी है.
तफ़्तीश का पहलू नंबर-3- लॉजिस्टिक और लोकल सपोर्ट कहां से मिला? अतीक और अशरफ को निशाना बनाने के लिए ये हमलावर पत्रकार के भेष में आए थे। उनके पास नकली आई कार्ड, नकली माइक और यहां तक कि डमी कैमरा भी मौजूद था. ऊपर से तीनों अलग-अलग शहरों के होने की वजह से वारदात को अंजाम देने से पहले प्रयागराज के होटल में आकर रुके भी थे. मौका-ए-वारदात तक ये एक ऐसी मोटरसाइकिल पर सवार होकर पहुंचे, जिसके मालिक का अता-पता भी पूरी तरह साफ नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इन हमलावरों के ये सारा इंतजाम किसने और किसके इशारे पर किया? आखिर अतीक और अशरफ की हत्या के लिए इनके पास लाखों रुपये कहां से आए?
मणिपुर हिंसा को लेकर देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम खुद अपनी पार्टी में ही घिर गए हैं. उन्होंने मणिपुर हिंसा को लेकर एक ट्वीट किया था. स्थानीय कांग्रेस इकाई के विरोध के चलते उन्हें ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा. आइये देखते हैं कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व क्या मणिपुर की हालिया परिस्थितियों को समझ नहीं पा रहा है?
महाराष्ट्र में तमाम सियासत के बीच जनता ने अपना फैसला ईवीएम मशीन में कैद कर दिया है. कौन महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री होगा इसका फैसला जल्द होगा. लेकिन गुरुवार की वोटिंग को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा जनता के बीच चुनाव को लेकर उत्साह की है. जहां वोंटिग प्रतिशत में कई साल के रिकॉर्ड टूट गए. अब ये शिंदे सरकार का समर्थन है या फिर सरकार के खिलाफ नाराजगी.