
गोरख पांडे: इस दुनिया को जितनी जल्दी संभव हो, बदल देना चाहिए…
The Wire
पुण्यतिथि विशेष: गोरख पांडे कहते थे कि उनके तई कविता और प्रेम ही दो ऐसी चीजें थीं, जहां व्यक्ति को मनुष्य होने का बोध होता है. भावनाओं को वे अस्तित्व की निकटतम अभिव्यक्ति मानते थे.
हवा का रुख कैसा है, हम समझते हैं/ हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं, हम समझते हैं/ हम समझते हैं खून का मतलब/ पैसे की कीमत हम समझते हैं/क्या है पक्ष में, विपक्ष में क्या है, हम समझते हैं/ हम इतना समझते हैं/ कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं.
चुप्पी का मतलब भी हम समझते हैं/ बोलते हैं तो सोच-समझकर बोलते हैं हम/ हम बोलने की/ आजादी का/ मतलब समझते हैं/ टुटपुंजिया नौकरी के लिए/आजादी बेचने का मतलब हम समझते हैं/मगर हम क्या कर सकते हैं/ अगर बेरोजगारी अन्याय से/तेज दर से बढ़ रही है/ हम आजादी और बेरोजगारी दोनों के/खतरे समझते हैं/ हम खतरों से बाल-बाल बच जाते हैं/हम समझते हैं/ हम क्यों बच जाते हैं, यह भी हम समझते हैं.
….वैसे हम अपने को किसी से कम/ नहीं समझते हैं/हर स्याह को सफेद और/ सफेद को स्याह कर सकते हैं/….करने को तो हम क्रांति भी कर सकते हैं/…लेकिन हम समझते हैं/ कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं/ हम क्यों कुछ नहीं कर सकते हैं/ यह भी हम समझते हैं.
इस प्रतिगामी समय में देश में ‘समझदारों’ की जो हालत हो गई है, उसके मद्देनजर स्मृति शेष गोरख पांडे का लिखा समझदारों का यह गीत आज उनके वक्त से कहीं ज्यादा ‘प्रासंगिक’ और चर्चित होना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं है तो उन्हीं के शब्दों में कहें तो हमें यह भी समझते हैं कि ऐसा क्यों नहीं है.