
गांधी की ज़रूरत
The Wire
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: गांधी-विचार अब तक, सारे हमलों और लांछनों-अपमानों के बावजूद, मौजूद है, प्रेरक हैं और उसका हमारे समय के लिए पुराविष्कार संभव है. भारत में अपार साधनों से अनेक दुष्प्रवृत्तियां पोसी जा रही हैं, गांधी उनका स्थायी और मजबूत प्रतिरोध हैं.
गांधी को लेकर भारतीय समाज में कम से कम तीन धाराएं आज साफ नज़र आती हैं. पहली जो उनकी दृष्टि और अभिप्रायों आदि को लेकर अपने-अपने स्तर पर शिक्षा-पर्यावरण-सामाजिक सद्भाव और कार्य आदि क्षेत्रों में सक्रिय हैं और जिन्हें उनकी ज़रूरत पर कोई संशय नहीं हैं. इनमें से बहुत सारी ऐसी संस्थाएं हैं जो अपने को गांधीवादी घोषित नहीं भी करतीं.
दूसरी जो इन दिनों बाढ़ पर है उन लोगों की है जो उन्हें सिरे से ख़ारिज करते, उनके हत्यारे को महिमामंडित करते, उन्हें देश के विभाजन से लेकर कल्पित स्त्रैणता तक के लिए लांछित करते रहते हैं. कहीं न कहीं गांधी का दैनिक अपमान उनकी भावात्मक और धार्मिक ज़रूरत बन चुका है.
तीसरी धारा उनकी है जो सर्वथा उदासीन अनजान हैं और उन्हें अपने जीवन में भौतिक के अलावा किसी और गहरे आत्मिक परिवर्तन की दरकार नहीं है.
पर शायद यह गिनती पूरी नहीं है. एक ऐसा वर्ग धीरे-धीरे विकसित होता लग रहा है जिसने पहले भी उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था पर अब उन्हें लगता है कि गांधी से सीखने को कुछ है. उन्हें लग रहा है कि जिस तरह की सांप्रदायिक हिंसा, धर्मांधकट्टरता, बाज़ारू मानसिकता, जातिपरक हिंसा और अन्याय, इतिहास और संस्कृति की दुर्व्याख्या, विस्मृति की चपेट में समाज आ रहा है, उससे अलग रास्ता गांधी से ही समझ में आ सकता है. इस वर्ग में बड़ी संख्या युवाओं की है.