
ग़ुलाम हैदर: जिन्होंने लता, नूरजहां और शमशाद जैसी आवाज़ें फ़िल्मी दुनिया को दीं
BBC
मास्टर ग़ुलाम हैदर ने ही दुनिया को मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहां और लता मंगेशकर जैसी सुरीली आवाज़ों का तोहफ़ा दिया. साथ ही, 12 साल की उम्र में उन्होंने लोगों से शमशाद बेगम का परिचय कराया. वो बाद में अविभाजित भारत की पहली प्रसिद्ध फ़िल्म गायिका बनीं.
फ़िल्म संगीत में मास्टर ग़ुलाम हैदर का वही स्थान है, जो फिज़िक्स में अल्बर्ट आइंस्टाइन और सर आइज़ैक न्यूटन का है. उन्होंने 90 साल पहले फ़िल्म संगीत के डीएनए का आविष्कार किया था. लगभग एक सदी बाद आज भी, रचना के मामले में फ़िल्म का प्लेबैक म्यूज़िक उसी अंदाज़ का है.
मास्टर जी को ये सम्मान हासिल है कि उन्होंने उपमहाद्वीप के संगीत को मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहां और लता मंगेशकर जैसी सुरीली आवाज़ों का तोहफ़ा दिया. इतना ही नहीं बल्कि मास्टर ग़ुलाम हैदर ने ही 12 साल की उम्र में लोगों से शमशाद बेगम का परिचय कराया, जो बाद में अविभाजित भारत की पहली प्रसिद्ध फ़िल्म गायिका बनीं.
चूंकि शमशाद बेगम इस क्षेत्र की पहली प्लेबैक सिंगर थीं, इसलिए ही नूरजहां और लता मंगेशकर सहित उनके बाद आने वाली गायिकाओं ने शमशाद बेगम की शैली का उपयोग करते हुए गायकी के अपने अनोखे अंदाज़ की बुनियाद रखी.
मास्टर ग़ुलाम हैदर ने ही 74 साल पहले लता मंगेशकर की क्षमताओं को पहचाना था, जब वो कमर्शियल बाजार में एक 'कोरस गर्ल' थीं. बीबीसी उर्दू से बात करते हुए लता मंगेशकर को ये बातें बिलकुल ऐसे याद थी, जैसे कल की ही बात हो.
उन्होंने कहा, ''ये उन दिनों की बात है, जब मुंबई में फ़िल्म 'शहीद' की तैयारियां चल रही थीं. मास्टर ग़ुलाम हैदर इसके म्यूज़िक डायरेक्टर थे. ये फ़िल्म उस समय की जानी-मानी फ़िल्म कंपनी फ़िल्मिस्तान के बैनर तले बन रही थी. इसके मालिक शशिधर मुखर्जी थे, जिन्होंने मेरी आवाज़ ये कहकर ख़ारिज कर दिया कि आवाज़ बहुत बारीक और चुभती हुई है, जो दर्शकों को पसंद नहीं आएगी.''