
गलत जेंडर पहचान, यौन हिंसा और उत्पीड़न: भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर होने की नियति
The Wire
जहां देश में एक तरफ ट्रांसजेंडर पहचान रखने वाले लोगों के लिए क़ानूनी अधिकारों की बात होना शुरू हो रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की जेलों में बंद ऐसे लोग ज़रूरी हक़ों और सुविधाओं से भी महरूम हैं.
यह आलेख बार्ड- द प्रिजन प्रोजेक्ट सीरीज की कड़ी के तौर पर पुलित्जर सेंटर ऑन क्राइसिस रिपोर्टिंग के साथ साझेदारी में प्रस्तुत किया गया है. मुंबई/नागपुर/मंगलुरू: ए-4 आकार की एक नोटबुक नागपुर सेंट्रल जेल में किरण गवली द्वारा गुजारे गए 17 महीनों की गवाही देती है. किरण बगैर नागा किए हर दिन थोड़ा समय निकालकर दिन भर की घटनाओं का ब्यौरा लिखा करती थीं- नई बनाई गई दोस्तियों, वेदना, अकेलेपन और कभी -कभी दिल टूटने के बारे में. किसी-किसी दिन शब्द कविता की तरह बहकर आया करते थे, दूसरे दिनों में सिर्फ गुस्से से भरी कच्ची-पक्की पंक्तियां. किरण-ए-दास्तां शीर्षक से लिखी गई डायरी की हर पंक्ति और पन्ने पर शब्द उकेरे हुए हैं. हालांकि बहुत ही समझदारी से लिखी गई इस डायरी के कुछ पन्ने गायब हैं- मानो किसी ने गुस्से में उसे फाड़कर अलग कर दिया हो.More Related News