गरीब देश 'आत्मनिर्भर भारत' की मदद कर रहे, PM सेंट्रल विस्टा का काम करा रहे, सामना में तंज
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शिवसेना के मुखपत्र सामना में कोरोना संकट को लेकर शनिवार को एक लेख लिखा गया है. इस लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमले किए गए हैं. सामना में लिखा है कि दुनिया भारत को दया की नजर से देख रही है. छोटे-छोटे देशों ने भी आत्मनिर्भर हिंदुस्तान की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है.
शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर तीखे हमले किए गए हैं. सामना में लिखा गया है कि कोरोना जिस तेजी से हिंदुस्तान में फैल रहा है, उससे पूरा विश्व संकट में आएगा, इसलिए हिंदुस्तान को कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए देश ज्यादा से ज्यादा मदद करें, ऐसा यूनिसेफ ने कहा है. ये भी लिखा गया है कि इस तरह के संकट पाकिस्तान, रवांडा, कांगो जैसे देशों पर आता था, लेकिन आज राजनेताओं की गलत नीतियों के कारण ये समय खुद को आत्मनिर्भर कहलाने वाले हिंदुस्तान पर आया है. तंज कसते हुए ये भी लिखा गया है कि गरीब देश आत्मनिर्भर भारत की मदद कर रहे हैं, तब भी पीएम सेंट्रल विस्टा का काम रोकने को तैयार नहीं हैं.सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
देश का सबसे तेज न्यूज चैनल 'आजतक' राजधानी के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में तीन दिवसीय 'साहित्य आजतक' महोत्सव आयोजित कर रहा है. इसी कार्यक्रम में ये पुरस्कार दिए गए. समारोह में वरिष्ठ लेखकों और उदीयमान प्रतिभाओं को उनकी कृतियों पर अन्य 7 श्रेणियों में 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान' से सम्मानित किया गया.
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हिंदी साहित्य के विमर्श के दौरान आने वाले संकट और चुनौतियों को समझने और जानने की कोशिश की जाती है. हिंदी साहित्य में बड़े मामले, संकट और चुनने वाली चुनौतियाँ इन विमर्शों में निकली हैं. महत्वपूर्ण विचारकों और बुद्धिजीवियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं. हिंदी साहित्यकार चन्द्रकला त्रिपाठी ने कहा कि आज का विकास संवेदन की कमी से ज्यादा नजर आ रहा है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति प्रेम के लिए वस्तुओं की तरफ झूक रहा है, लेकिन व्यक्ति के प्रति संवेदना दिखाता कम है. त्रिपाठी ने साहित्यकारों के सामने मौजूद बड़े संकट की चर्चा की. ये सभी महत्वपूर्ण छोटी-बड़ी बातों का केंद्र बनती हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं.