गंभीर अपराधों में ज़मानत देने से पहले पीड़ित और परिवार के अधिकारों पर विचार हो: हाईकोर्ट
The Wire
जघन्य अपराध के दोषियों की ज़मानत के लिए व्यापक मानदंड निर्धारित करने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि पीड़ित से परामर्श के बाद उस पर अपराध के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रभाव आदि के आकलन के बाद ही आरोपी को ज़मानत दी जानी चाहिए.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि गंभीर और जघन्य अपराधों के मामलों में किसी आरोपी को जमानत देने से पहले पीड़ित और उसके परिवार के अधिकारों पर विचार किया जाना चाहिए.
उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत को सुझाव दिया कि पीड़ित से परामर्श के बाद ‘पीड़ित प्रभाव आकलन’ रिपोर्ट ली जानी चाहिए. रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से सभी चिंताओं के साथ-साथ अपराध के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रभाव तथा पीड़ित पर जमानत के प्रभाव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी होनी चाहिए.
उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री ने शीर्ष अदालत को पूर्व के एक आदेश के आलोक में अपने सुझाव दिए हैं, जिसमें दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जियों के मामलों को विनियमित करने के लिए ‘व्यापक मानदंड’ निर्धारित करने में मदद करने के लिए कहा गया था.
उच्च न्यायालय ने गंभीर और जघन्य अपराधों के संदर्भ में कहा, ‘जमानत देने से पहले पीड़िता के अधिकारों पर विचार किया जाना चाहिए.’