खामोशी से मंसूबों को ऐसे अंजाम दे रहे आतंकी, जानें- क्या है हाइब्रिड कम्यूनिकेशन तकनीक जो बनी सेना की नई चुनौती
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एक महीने के भीतर जम्मू क्षेत्र में पांच बड़े आतंकी हमलों ने एजेंसियों को सतर्क कर दिया है. महीनेभर पहले रियासी में बस पर आतंकी हमला हुआ तो ताजा हमला कठुआ में हुआ. सोमवार को कठुआ में मचेड़ी -किंडली-मल्हार रोड पर अटैक हुआ. यहां आतंकियों ने रुटीन पेट्रोलिंग पर निकले सैन्य वाहन को टारगेट करते हुए ग्रेनेड्स की बौछार कर दी. इस हमले में पांच जवान शहीद हुए हैं, और कई घायल हैं.
घाटी में पिछले कुछ समय से आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. जहां धारा 370 हटने के बाद कश्मीर शांत नजर आ रहा है तो वहीं दहशतगर्दों ने अब जम्मू को टारगेट करना शुरू कर दिया है. एक महीने के भीतर जम्मू क्षेत्र में पांच बड़े आतंकी हमलों ने एजेंसियों को सतर्क कर दिया है. महीनेभर पहले रियासी में बस पर आतंकी हमला हुआ तो ताजा हमला कठुआ में हुआ. सोमवार को कठुआ में मचेड़ी -किंडली-मल्हार रोड पर अटैक हुआ. यहां आतंकियों ने रुटीन पेट्रोलिंग पर निकले सैन्य वाहन को टारगेट करते हुए ग्रेनेड्स की बौछार कर दी. इस हमले में पांच जवान शहीद हुए हैं, और कई घायल हैं.
आतंकी इन मंसूबों को इतनी खामोशी से अंजाम दे रहे हैं कि प्लानिंग की भनक तक खुफिया एजेंसियों को नहीं लग रही है. हालांकि सवाल उठता है कि आतंकी जम्मू क्षेत्र में रहते हुए पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से लगातार संपर्क में रहे और सेना या खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक कैसे नहीं लगी? तो बता दें आतंकी हाइब्रिड कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं. आतंकियों द्वारा पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से संपर्क साधने के लिए हाइब्रिड अल्ट्रासेट सिस्टम का इस्तेमाल किया गया. सेना को सर्च ऑपरेशन के दौरान ऐसे की अल्ट्रासेट सिस्टम मिले हैं. इन्हीं का इस्तेमाल करके आतंकियों ने पूरी प्लानिंग की और जम्मू में हमलों को अंजाम दिया.
ऐसे काम करता है अल्ट्रासेट सिस्टम
दरअसल, अल्ट्रासेट हैंडसेट हाइब्रिड कम्युनिकेशन सिस्टम को एकीकृत करता है, जो सेलुलर तकनीक को विशेष रेडियो उपकरणों के साथ जोड़ता है. ये डिवाइस मैसेज के प्रसारण और प्राप्ति के लिए रेडियो वेव्स का इस्तेमाल करता है, जो GSM या CDMA जैसे पारंपरिक मोबाइल नेटवर्क से स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं. प्रत्येक अल्ट्रासेट सीमा पार स्थित एक कंट्रोल स्टेशन से जुड़ा होता है और सीधे हैंडसेट-टू-हैंडसेट कम्युनिकेशन को सपोर्ट नहीं करता है.
चीनी सैटेलाइट का होता है इस्तेमाल
इसके बजाय, वे हैंडसेट से कंप्रेस्ड डेटा को पाकिस्तान में एक सेंट्रल सर्वर तक पहुंचने के लिए चीनी सैटेलाइट्स पर निर्भर रहते हैं. इसके बाद यह सर्वर मैसेज को उनके निर्दिष्ट प्राप्तकर्ताओं को भेजता है और यह हाइब्रिड तंत्र सुरक्षा एजेंसियों खुफिया जानकारी जुटाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे उपकरणों की पकड़ में नहीं आता. इसके अलावा जम्मू की पहाड़ी स्थलाकृति भी चीजों को कठिन बना रही है, जहां नवीनतम सर्विलांस और इंटरसेप्शन सिस्टम सही से काम नहीं कर पाते. यही कारण है कि आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही तकनीक बड़ी बाधा बन रही है और सेना पर घातक हमले हो रहे हैं.
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