
ख़ुद को भारतीय साबित करने के लिए क्यों लड़नी पड़ी लंबी लड़ाई
BBC
पांच साल की लंबी भागदौड़ और क़ानूनी लड़ाई के बाद शेफाली रानी दास ने खोई नागरिकता तो फ़िर हासिल कर ली लेकिन पति को भारतीय साबित करना अभी बाकी है.
"पुलिस मुझे पकड़ने के लिए कई घंटे हमारे घर के सामने बैठी रही. मैं तब घर पर ही थी, लेकिन पुलिस को देखने के बाद पीछे के दरवाजे से भाग गई और गांव से दूर एक मुसलमान परिवार के घर दिन भर छिपी रही. बच्चों के लिए रात को घर तो आना पड़ा लेकिन डर से न तो खाना पेट में उतरता था. न ही रातों को नींद आती थी."
लगभग पांच साल की अनथक भाग-दौड़ और लंबी लड़ाई के बाद शेफाली रानी दास ने खोई नागरिकता तो फिर से हासिल कर ली है लेकिन वो बुरा समय उनके मन-मष्तिष्क में घर कर गया.
गुवाहाटी हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 42 साल की शेफाली दास पिछले माह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) के सामने अपनी नागरिकता का दावा साबित करने में कामयाब रहीं, जिस अधिकार पर साल 2017 में प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया था. अब वे फिर से एक भारतीय नागरिक हैं.
असम में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स में जिन लोगों की नागरकिता को लेकर मामले चल रहे हैं उन्हें शहरियत साबित करने के लिए पहली जनवरी 1966 से पहले के भारत में रहने से संबंधित दस्तावेज जमा करवाने पड़ते हैं.
हालांकि 15 अगस्त, 1985, को भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच जो असम समझौता हुआ था उसमें विदेशियों का पता लगाने और निर्वासित करने की कट-ऑफ़ तारीख़ 25 मार्च, 1971 तय की गई थी. लेकिन अब असम समझौते का क्लॉज 6 लागू कर दिया गया है जिसके बाद भारतीय नागरिकता के लिए पहली जनवरी 1966 या उससे पहले के क़ागज़ दिखाने पड़ते हैं.