क्या 400 सीटों वाली पार्टी बदल सकती है संविधान? जानें नियमों की कसौटी पर कितना खरा है अनंत हेगड़े का बयान
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भारतीय संविधान में 42वां संशोधन सबसे ज्यादा विवादों और चर्चा में रहा है. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 1976 में इसे पारित किया. इस अधिनियम को 'मिनी-संविधान' के रूप में भी जाना जाता है. क्योंकि इसमें भारतीय संविधान में बड़ी संख्या में संशोधन किए गए थे. इसे '42वां संशोधन अधिनियम' या संविधान अधिनियम, 1976 भी कहा जाता है.
बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े ने कहा है कि संविधान में संशोधन के लिए BJP को दो तिहाई बहुमत दिलाएं. उन्होंने कहा, हमारे पास लोकसभा में दो तिहाई बहुमत है. लेकिन राज्यसभा में हमारा बहुमत नहीं है. आगामी लोकसभा चुनाव में एनडीए को 400 पार सीटें मिलने पर राज्यसभा बहुमत हासिल करने में मदद मिलेगी. उनके इस बयान पर राजनीति भी गरमा गई है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि संविधान में अब तक संशोधन या बदलाव नहीं किया गया है. जून 1951 में संविधान में पहला संशोधन हुआ. उसके बाद यह सिलसिला लगातार चलता आ रहा है. कुल संशोधनों का औसत निकाला जाए तो हर साल करीब दो संशोधन होते हैं.
इमरजेंसी के वक्त तो संविधान में इस हद तक बदलाव किए गए कि अंग्रेजी में इसे 'कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया' की जगह 'कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा' कहा जाने लगा था. इंदिरा गांधी ने एक ही संशोधन में 40 अनुच्छेद तक बदल दिए थे. यही वजह है कि 42वें संशोधन को मिनी संविधान भी कहा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 10 साल की सरकार में भी संविधान में 8 बड़े संशोधन किए गए हैं.
जानिए क्या था 42वां संशोधन
इंदिरा गांधी के शासन में इमरजेंसी के दौरान 42वां संशोधन हुआ था. ये संशोधन अब तक का सबसे व्यापक और विवादास्पद रहा है. उस वक्त ऐसा लगा था कि इस संशोधन के द्वारा सरकार कुछ भी बदल सकती है. यही वजह है कि इसे मिनी संविधान भी कहा जाता है. इसमें संविधान की प्रस्तावना में तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए थे. 42वें संशोधन के सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक था- मौलिक अधिकारों की तुलना में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को वरीयता देना. इस प्रावधान के कारण किसी भी व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों तक से वंचित किया जा सकता था. इस संशोधन ने न्यायपालिका को पूरी तरह से कमजोर कर दिया था. जबकि विधायिका को अपार शक्तियां दे दी गई थीं. केंद्र सरकार को यह भी शक्ति दे दी गई थी कि वो किसी भी राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर कभी भी सैन्य या पुलिस बल भेज सकती थी. दूसरी तरफ राज्यों के कई अधिकारों को केंद्र के अधिकार क्षेत्र में डाल दिया गया.
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