क्या है दिल्ली में 150 साल पुरानी सुनहरी बाग मस्जिद का मामला, जिसे हटाने के फैसले पर हो रहा विवाद
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नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (NDMC) ने लुटिएंस जोन में स्थित सुनहरी मस्जिद को गिराने के प्रस्ताव पर जनता से राय मांगी है. लोकसभा सांसद दानिश अली सहित कई मुस्लिम नेताओं ने एनडीएमसी के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते जताई है और कहा है कि मस्जिद का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है, इसे गिराया नहीं जाना चाहिए.
राजधानी दिल्ली में स्थित 150 साल पुरानी सुनहरी बाग मस्जिद पर नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) बुलडोजर चलाने की तैयारी कर रहा हैं जिसे लेकर विरोध तेज हो गया है. राजनेताओं से लेकर प्रमुख मौलानाओं ने इस मस्जिद को हटाने का विरोध किया है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने तो पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को तक इसे लेकर पत्र लिख दिया है.
एनडीएमसी ने दिया नोटिस एनडीएमसी ने मस्जिद को हटाने के प्रस्ताव पर आम लोगों से राय मांगी है. एनडीएमसी ने रविवार को एक नोटिस जारी कर एक जनवरी तक इस मामले में लोगों से आपत्तियां एवं सुझाव आमंत्रित किए हैं. मध्य दिल्ली में एक चौराहे पर स्थित मस्जिद को आसपास यातायात बाधित होने के आधार पर हटाने का प्रस्ताव दिया गया है.
कहा जा रहा है कि अब एनडीएमसी को बड़ी संख्या में ई-मेल्स मिली हैं जिसमें से अधिकांश ईमेल में विध्वंस का विरोध किया गया है. मुस्लिम संगठनों और अल्पसंख्यक कल्याण निकायों से कई ईमेल प्राप्त हुए हैं.
नेताओं ने किया विरोध
अमरोहा से लोकसभा सदस्य दानिश अली ने राष्ट्रीय राजधानी में सुनहरी बाग मस्जिद को हटाने के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि मस्जिद का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है. अली ने विरासत संरक्षण समिति को लिखे एक पत्र में कहा कि मस्जिद के ‘ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व’ को देखते हुए ऐसा ‘सख्त कदम अनुचित’ है और इससे जनता का विश्वास कमजोर हो सकता है.
दानिश अली ने कहा कि दिल्ली वक्फ बोर्ड ने पहले एक संयुक्त सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के संभावित विध्वंस को लेकर चिंता जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया थ. उनके अनुसार अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि विध्वंस की आशंका का कोई आधार नहीं है और दिल्ली वक्फ बोर्ड से संबंधित अदालती कार्यवाही 18 दिसंबर को बंद कर दी गई थी. उन्होंने कहा, ‘उच्च न्यायालय में अवकाश होने के तुरंत बाद नोटिस जारी करने से प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह पैदा होता है.’
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