
क्या हिमाचल में गुजरात, उत्तराखंड का फॉर्मूला न अपनाकर बीजेपी ने गलती कर दी?
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हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर की अगुवाई में बीजेपी चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन सूबे में साढ़े तीन दशक से चले आ रहे सत्ता परिवर्तन के रिवाज को नहीं बदल पाई. हालांकि, बीजेपी जब राज्यों में अपने सीएम को बदल रही थी तब जयराम ठाकुर के भी बदलने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन पर अपना भरोसा कायम रखा.
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 40 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही. बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान में नारा दिया था, 'सरकार नहीं रिवाज बदलेंगे' लेकिन राज्य की जनता ने रिवाज नहीं सरकार ही बदल दी. बीजेपी को महज 25 सीटों से संतोष करना पड़ा. जयराम ठाकुर सरकार के 10 में से आठ मंत्री चुनाव हार गए जबकि गुजरात में पार्टी ऐतिहासिक जीत के साथ अपनी सत्ता को बचाए रखने में सफल रही है. सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी ने उत्तराखंड और गुजरात की तरह हिमाचल में चुनाव से पहले सीएम बदलने का फॉर्मूला न अपनाकर क्या सियासी गलती कर दी है?
गौरतलब है कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से गुजरात, उत्तराखंड, त्रिपुरा और कर्नाटक सहित पांच मुख्यमंत्रियों को बदला. इस तरह बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में पुराने सीएम को हटाकर एक नए चेहरे के साथ उतरने की अपनी रणनीति अपनाई, जिसका उसे पहले उत्तराखंड में लाभ मिला और अब गुजरात में यह दांव सफल रहा. इस तरह से पांच राज्यों में से दो राज्यों में चुनाव हुए हैं, जहां पर उसे जीत मिली है जबकि बाकी तीन राज्यों में चुनाव होने हैं.
उत्तराखंड में बीजेपी इस फॉर्मूले के जरिए बीते दो दशक से हर पांच साल के सत्ता परिवर्तन के चले आ रहे ट्रेंड को भी तोड़ने में कामयाब रही. वहीं, असम में बीजेपी मौजूदा सीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ने के बजाय सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी. यह रणनीति भी सफल रही थी और सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने मौजूदा सीएम सर्बानंद सोनोवाल को रिपीट करने के बजाय हेमंत बिस्वा सरमा को कुर्सी सौंपी.
हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर की अगुवाई में बीजेपी चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन सूबे में साढ़े तीन दशक से चले आ रहे सत्ता परिवर्तन के रिवाज को नहीं बदल पाई. हालांकि, बीजेपी जब राज्यों में अपने सीएम को बदल रही थी तब जयराम ठाकुर के भी बदलने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन पर अपना भरोसा कायम रखा और वह 2022 के चुनाव में एक फिर से उन्हीं के अगुवाई में मैदान में उतरी.
साल 2020 में हिमाचल में हुए उपचुनाव के दौरान भी ये बात साफ हो गई थी कि प्रदेश में बीजेपी नेतृत्व की कमी से जूझ रही है. माना जाता है कि सीएम जयराम ठाकुर पांच साल तक सत्ता में रहने के बावजूद प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार की तरह लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल नहीं कर सके. जयराम ठाकुर 2017 में मुख्यमंत्री तब बने थे, जब बीजेपी के सीएम कैंडिडेट रहे प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे.
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