
'क्या हम 17वीं सदी में वापस जा रहे हैं...', महिला को निर्वस्त्र घुमाने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट नाराज
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घटना पर गंभीर आपत्ति जताते हुए एचसी ने कहा: “यह हम सभी के लिए शर्म की बात है. आजादी के 75 साल बाद हम इस स्थिति की उम्मीद नहीं कर सकते. यह हमारे लिए एक सवाल है कि क्या हम 21वीं सदी से 17वीं सदी में वापस जा रहे हैं? "क्या हम समानता या प्रगतिशीलता की ओर बढ़ रहे हैं या फिर, हम 17वीं और 18वीं शताब्दी में वापस जा रहे हैं.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए बेलगावी जिले के एक गांव में एक महिला को निर्वस्त्र घुमाने की घटना को "असाधारण मामला" करार दिया है. असल में 11 दिसंबर की सुबह जब महिला का बेटा एक लड़की के साथ भाग गया था. लड़की की सगाई किसी और से होने वाली थी. महिला के साथ मारपीट की गई, उसे निर्वस्त्र कर घुमाया गया और बिजली के खंभे से बांध दिया गया.
एक खंडपीठ ने बेलगावी के पुलिस आयुक्त के साथ सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) को अतिरिक्त रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 18 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने के लिए भी बुलाया. महाधिवक्ता ने गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वराले और न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ के समक्ष घटना पर की गयी कार्रवाई से संबंधित एक ज्ञापन और कुछ दस्तावेज रखे.
हालाँकि कोर्ट ने कहा कि “कम से कम हम यह कह सकते हैं कि घटना के बाद जिस तरह से चीजें हुईं, उससे हम संतुष्ट नहीं हैं. एजी ने अतिरिक्त रिपोर्ट सौंपने के लिए कुछ समय मांगा. इसके बाद एजी को सोमवार को रिपोर्ट देने की अनुमति मिली है. हाईकोर्ट ने आयुक्त और एसीपी को उपस्थित होने और अतिरिक्त रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया, साथ ही यह भी कहा कि, हमलावरों की तुरंत गिरफ्तारी हो.
घटना पर गंभीर आपत्ति जताते हुए एचसी ने कहा: “यह हम सभी के लिए शर्म की बात है. आजादी के 75 साल बाद हम इस स्थिति की उम्मीद नहीं कर सकते. यह हमारे लिए एक सवाल है कि क्या हम 21वीं सदी से 17वीं सदी में वापस जा रहे हैं? "क्या हम समानता या प्रगतिशीलता की ओर बढ़ रहे हैं या फिर, हम 17वीं और 18वीं शताब्दी में वापस जा रहे हैं. हमारी पीड़ा हमें ऐसे कठोर शब्दों का उपयोग करने के लिए मजबूर करती है. हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं लेकिन हम मदद नहीं कर सकते. हमें लगता है कि हम कम से कम अपनी बात तो कह ही सकते हैं.
एचसी ने आगे कहा कि “यह घटना आने वाली पीढ़ी को प्रभावित करेगी. क्या हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं जहां बेहतर भविष्य के सपने देखने का मौका मिले या हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं जहां कोई यह महसूस करेगा कि जीने से बेहतर मरना है? जहां एक महिला के लिए कोई सम्मान नहीं है.”
दलीलों के दौरान, HC ने कहा कि आरोपी भी SC/ST समुदाय से थे और इसलिए यह मामला SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत नहीं आता है. 12 दिसंबर को, HC ने समाचार रिपोर्टों के आधार पर घटना का स्वत: संज्ञान लिया था. गुरुवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह एक खतरनाक मिसाल कायम की जा रही है कि कानून का कोई डर नहीं है. आजादी के बाद प्रगतिशील राज्य कर्नाटक में अगर ऐसा होता है तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है. कानून का कोई डर न होना बहुत परेशान करने वाली बात है,''

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