क्या वेरियर एल्विन के महात्मा गांधी से दूर जाने की वजह उनका आदिवासियों के क़रीब जाना था
The Wire
ब्रिटिश मूल के एंथ्रोपोलॉजिस्ट वेरियर एल्विन ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई ख़त्म कर एक ईसाई मिशनरी के रूप में भारत आए थे. 1928 में वे पहली बार महात्मा गांधी को सुनकर उनसे काफी प्रभावित हुए और उनके निकट आ गए. गांधी उन्हें अपना पुत्र मानने लगे थे, लेकिन जैसे-जैसे एल्विन आदिवासियों के क़रीब आने लगे, उनके और गांधी के बीच दूरियां बढ़ गईं.
‘गांधी और आदिवासी’ विषय पर वैश्विक स्तर पर समय- समय पर चर्चाएं होती हैं. गांधीवादी भी यह महसूस करते हैं कि गांधी जिस ‘स्वराज’ की बात करते थे, वह आदिवासी जीवन-दर्शन में पहले से ही है. पहली बार टाना भगतों के संपर्क में आने पर गांधी भी चकित हुए थे कि जिन बातों का वे अभ्यास कर रहे हैं, उसे तो आदिवासी समुदाय जीता है.
कुमार सुरेश सिंह ने अपनी पुस्तक ‘बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन’ में लिखा है, ‘छोटानागपुर में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम ने बिरसा मुंडा को जब ब्रिटिश विरोधी संघर्ष का प्रतीक माना और राष्ट्रीय मान्यता दी, तब मुंडा और टाना भगतों ने, जो पहले से सक्रिय थे, गांधी को बिरसा का अवतार मानकर उनका अनुसरण करना शुरू किया.’
लेकिन उन दिनों गांधी के ‘स्वराज’ से देश के आदिवासी गायब थे. कोई यह भी नहीं सोच पाता था कि आदिवासियों से कुछ सीखा जा सकता है. इस विषय पर ब्रिटिश मूल के भारतीय नृतत्वशास्त्री (एंथ्रोपोलॉजिस्ट), आदिवासी समाजिक कार्यकर्ता, मानवजाति विज्ञानी वेरियर एल्विन और गांधी के संबंध को देखना रोचक होगा.
ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई खत्म कर वेरियर एल्विन एक ईसाई मिशनरी के रूप में भारत आए थे. 1928 में वे पहली बार गांधी को सुनकर उनसे काफी प्रभावित हुए. वे गांधी के काफी निकट आ गए. गांधी उन्हें अपना पुत्र मानने लगे, लेकिन जैसे-जैसे एल्विन आदिवासियों के निकट आने लगे, उनके और गांधी के बीच दूरियां आने लगी.